________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ ३७८ ]
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[तकारादि
(२४७५) त्रिफलातलम् (वं. से। अपस्मा.) उसके मुख को अच्छी तरह बन्द करके भूमिमें त्रिफलाव्योषकुष्ठाब्दयवक्षारफणिज्झकैः। दबा दीजिए । और एक मास पश्चात् निकालकर कल्कीकृतैरेभिर्द्रव्यैर्गजनत्रे चतुर्गुणे। छान लीजिए । साधितं नावनं तैलमपस्मारं विनाशयेत् ॥ सफेद बालों पर यह तैल लगाकर ऊपरसे
हर्र, बहेड़ा आमला, त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, करेलेके पत्ते रखकर कपड़ा बांध दीजिए । दूसरे पीपल) कूठ, मोथा, जवाखार, और बनतुलसीके दिन बालोंको त्रिफलेके काथसे धो डालिए और कल्क तथा चार गुने हाथीके मूत्रके साथ तैल | फिर इसी प्रकार तैल लगाइये । इस प्रकार सात पका लीजिए।
| दिन तक यह तेल लगाने और निर्वात स्थानमें इसकी नस्य लेनेसे अपस्मार (मिरगी) रोग | रहने तथा दुग्धाहार करनेसे सफेद बाल आयु भरके नष्ट होता है।
लिए काले हो जाते हैं। - (तैल १ भाग, हस्तीमूत्र ४ भाग, समान (२४७७) त्रिफलाद्यं तैलम् भागमिश्रित कल्क द्रव्य ३ भाग । सबको मिलाकर ! (वं. से.; वृ. नि. र.; यु. मा.; भा. प्र.; यो. र.; पकाएं)
ग. नि.; भै. र.; च. द. । मेदो वृ.; वृ. यो. (२४७६) त्रिफलादितलम् ।
त. । त. १०४) (र. र. र. । उपदे. ५; र. मं. । अ. ८) त्रिफलातिविषामूत्रिवृच्चित्रकवासकैः। त्रिफलालोहचूर्ण तु वारिणा पेषयेत्समम् । निम्बारग्वधषग्रन्थासप्तपर्णनिशाद्वयैः । तत्तुल्येन च तैलेन भृङ्गराजरसेन च ॥ गुडूचीन्द्रसुरीकृष्णाकुष्ठसर्षपनागरैः । पचेत्तैलावशेष तस्निग्धभाण्डे निरोधयेत् ।। तैलमेभिःसमैःपकं सुरसादिरसप्लुतम् ।। मासैकं भूगतं कुर्यात्तेन शीर्ष प्रलेपयेत् ॥ पानाभ्यजनगण्डूपनस्यवस्तिषु योजितम् । कारवल्लया दलैर्वेष्टय ततो वस्रेण बन्धयेत् । स्थूलताऽऽलस्थपाण्डादीन्जयेत्कफकृतान्गदान्। निर्वाते क्षीरभोजी स्यात्क्षालयेत्रिफलाजलैः॥ कक द्रव्य-हरे, बहेड़ा, आमला, अतीस, नित्यमेवं प्रकर्त्तव्यं लेपनं दिनसप्तकम् । मूर्वा, निसोत, चीता, बासा (अडूसा), नीमकी कपालरञ्जनं ख्यातं यावज्जीवं न संशयः॥ छाल, अमलतासका गूदा, बच, सप्तपर्ण (सतौना) + १-१ भाग त्रिफला और लोहचूर्णको पानीके । वृक्षकी छाल, हल्दी, दारुहन्दी, गिलोय, इन्द्रायण, साथ एकत्र खरल करें फिर उसमें समान भाग पीपल, कृट, सरसों और सोंठ। समान भाग तैल और तैलसे चार गुना भंगरेका रस मिलाकर मिश्रित आधा सेर । मन्दाग्नि पर पकाएं । जब समस्त रस जल जाय सुरसादिगणका काथ १६ सेर और तेल तो उस तैलको बिना छाने ही मिट्टीके चिकने । ४ सेर । सबको एकत्र मिलाकर पकाएं । पात्रमें ( अथवा चीनीके मर्तबान आदिमें ) भरकर इसे पान, अभ्यङ्ग, बस्ति, नस्य और
For Private And Personal