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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir गुटिकाप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [३५७ ] हिचकी, खांसी, अरुचि, श्वास, कफ और उदावर्त । निसोत और पिप्पलीके चूर्णको घीमें भूनकर रोग नष्ट होता है। समान भाग गुड़की चाशनीमें मिलाकर मोदक ___ मात्रा-१ मोदक । अनुपान उष्ण जल ।) बना लीजिए। (२४१२) त्रिवृतादिमोदकः ___ इन्हें मण्डके साथ सेवन करनेसे सन्निपात (वं. से.; . मा. । रक्तपित्ता.) नष्ट होता है। त्रिता त्रिफला श्यामा पिप्पली शर्करा मधु । (२४१५) त्रिवृतादिवटिका (ग.नि.।उदावत.) मोदकःसन्निपातोत्थरक्तपित्तज्वरापहः॥ त्रिटद्धरीतकी श्यामा स्नुहीक्षीरेण भावयेत् । निसोत, हर्र, बहेड़ा, आमला, काला निसोत, वटिका मूत्रपीतास्ताः श्रेष्ठास्त्वानाहभेदने ॥ और पीपलका चूर्ण १-१ भाग तथा खांड और निसोत, हर्र और काली निसोतका चूर्ण शहद इन सबके बराबर लेकर खांडकी चाशनी । समान भाग लेकर उसे थोहर (सेहुंड)के दूधमें घोटकर करके उसमें समस्त चूर्ण मिला दीजिए और । ( चनेके बराबर ) गोलियां बना लीजिए । ठण्डा होने पर शहद मिलाकर मोदक बना लीजिए। इन्हें गोमूत्रके साथ सेवन करनेसे विरेचन इनके सेवनसे सन्निपातज रक्तपित्त और ज्वर होकर अफारा नष्ट हो जाता है। नष्ट होता है। (२४१६) त्रिवृदष्टकमोदकः (२४१३) त्रिवृतादिमोदकः (च.स.। कल्प.) (सु. संहिता । सूत्र. अ. ४४ ) व्योषं त्रिजातकं मुस्ता विडङ्गामलके तथा । त्रिवृत्पलं द्विप्रमृतं पथ्या धान्योवृकयोः।। नवैतानि समांशानि त्रिवृदष्टगुणानि वै॥ दशैतान् मोदकान् कुर्यादीश्वराणां विरेचनम् ।। | श्लक्ष्णचूर्णीकृतानीह दन्तीभागद्वयं तथा। निसोतका चूर्ण १ पल (५ तोले ), हर्र, सर्वाणि चूर्णितानीह गलितानि विमिश्रयेत् ॥ धनिया और अरण्डमूल का चूर्ण ४-४ पल लेकर षड्भिश्च शर्कराभागैरीषत्सैन्धवमाक्षिकैः । सबको सब चर्णके बराबर गुड़की चाशनीमें मिलाकर | पिण्डितं भक्षयित्वा तु ततः शीताम्बु पाययेत् ।। उस सबके दश मोदक बना लीजिए। . वस्तिरुक्तृड्ज्वरच्छर्दिशोष पाण्डुभ्रमापहम् । धनिक पुरुषोंको विरेचन कराने के लिए यह नियन्त्रणमिदं सर्व विषन्नन्तु विरेचनम् ॥ मोदक अत्युपयोगी हैं। त्रिवृदष्टकसंज्ञोयं प्रशस्त पित्तरोगिणाम् । ( व्यवहारिक मात्रा २ तोले । अनुपान | भक्ष्यःक्षीरानुपानो वा पित्तश्लेष्मातुरैर्नरैः ।। उष्ण जल)। सोंठ, मिर्च, पीपल, दालचीनी, इलायची, (२४ १४) त्रिवृतादिमोदकः (ग.नि.।ज्वर.) तेजपात, मोथा, बायबिडंग और आमलेका चूर्ण त्रिवृत्पिप्पलिसंयुक्तो गुडसर्पिर्विपाचितः। १-१ भाग; निसोतका चर्ण ८ भाग, तथा दन्ती. मण्डानुपानो दातव्यो मोदकः सन्निपातहा॥ मूलका चूर्ण २ भाग । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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