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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ३४८] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः । [तकारादि (२३८२) त्र्यूषणादिचूर्णम् | हाऊबेर, बायबिडंग, सेंधा, बच और तिन्तडीकके __ (ग. नि.; वृं. मा.; यो. र.; । अरोचका.) समान भाग मिश्रित चूर्णको मण्ड, मद्य अथवा त्रीण्यूषणानि त्रिफला रजनीद्वयश्च । गर्म पानीके साथ सेवन करनेसे अर्श, ग्रहणी, चूर्णीकृतानि यावशूकविमिश्रितानि ॥ शूल और आनाह (अफारे)का नाश होता है । क्षौद्रान्वितानि वितरेन्मुखधावनार्थ- । | (२३८५) त्र्यूषणाद्यं चूर्णम् मन्यानि तिक्तकटुकानि च भेषजानि ॥ (वृ. यो. त. । त. १०४) ___ अरुचिमें त्रिकुटा, त्रिफला, हल्दी, दारुहल्दी | त्र्यूषणं त्रिफला चव्यं चित्रकं विडमौद्भिदम् । और जवाखार के समान भाग मिश्रित चूर्णको वाकुची सैन्धवञ्चैव सौवर्चलसमन्वितम् ॥ शहदमें मिलाकर उससे अथवा अन्य कटु (चरपरी) | माषमात्रमिदं चूर्ण लिहेदाज्यमधुप्लुतम् । और तिक्त ( कड़वी ) ओषधियोंके चूर्णसे मञ्जन | अतिस्थौल्यमिदं चूर्ण निहन्त्यग्निविवर्धनम् ॥ कराना चाहिए, और इनकी जिह्वापर मालिश करानी | मेदानं मेहकुष्ठनं श्लेष्मव्याधिनिणम् । चाहिए। नाऽहारे नियमश्चात्र विहारे वा विधीयते ॥ (२३८३)त्र्यूषणादिचूर्णम् (वं. से. । नासा.) ऋषणायमिदं चूर्ण रसायनमनुत्तमम् ॥ त्र्यूषणं गुडसंयुक्तं स्निग्धं दुग्धान्नभोजनम् । । त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ), हरे, बहेड़ा, प्रतिश्यायहरं प्रोक्तं विशेषात्कफनाशनम् ॥ आमला, चव्य, चीता, बिड (खारी) नमक, - त्रिकुटा ( सोंठ, मिर्च और पीपल) के चूर्णको औद्भिद् नमक ( शोरा ), बाबची, सेंधा और गुड़में मिलाकर (गरम पानीके साथ ) सेवन सौं वल ( काला नमक ) समान भाग लेकर चूर्ण करने और दूध भातादि स्निग्ध भोजन करनेसे बना लीजिए। प्रतिश्याय और विशेषतः कफ नष्ट होता है। इसे १ मापेकी मात्रानुसार घी और शहदमें (२३८४) त्र्यूषणाद्यं चूर्णम् मिलाकर चाटनेसे अति स्थूलता ( मुटापा), मेद, (च. सं. । चि. अ. ८ संप्र.) प्रमेह, कुष्ठ और कफज रोग नष्ट होते तथा अग्नि त्र्यूषणं पिप्पलीमूलं पाठां हिॉ सचित्रकम् । प्रदीप्त होती है। सौवर्चलं पुष्कराख्यमजाजी विल्वपेशिकाम्॥ यह चूर्ण अत्यन्त रसायन है । इसके सेवन विडं यवानी हपुषां विडङ्गं सैन्धवं वचाम् । कालमें किसी प्रकारके परहेज़की भी आवश्यकता तिन्तडीकं च मण्डेन मोनोष्णोदकेन वा ॥ नहीं होती । तथाऽर्शाग्रहणीदोषशूलानाहाच मुच्यते ॥ (२३८६) त्वगाद्यमुद्वर्त्तनम् । त्रिकटा ( सोंठ, मिर्च, पीपल ), पीपलामूल, ! ( ग. नि.; . मा. । अजी. ) पाठा, हींग, चीता, काला नमक, पोखरमूल, जीरा, त्वपत्ररास्नागुरु शिवकुष्ठेबेलगिरी, बिडनमक ( खारी नमक ), अजवायन, । रम्लमपिष्टैः सवचाशताहैः। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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