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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [३४६] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः । [तकारादि इसे गर्म पानीके साथ खानेसे कफज शूल (२३७३) त्रिवृतादिचूर्णन नष्ट होता है । (मात्रा १ माशा ।) । (वा. भ. । क. अ. २; च. सं. । क. अ. ७) (२३६९) त्रिवृवर्णम् (वं से.; वृ. नि. र. । ज्व.) त्रिवृतरालमा मुस्ता शरोदीच्यचन्दनम् । चूणे त्रि कगाश्यामा त्रिफलानां सिता समम्। द्राक्षाम्बुना सपष्टयाह शीतलं जलदात्यये ॥ भेदि कोष्ठरुजादाहगौरवज्वरनाशनम् ॥ निसोत, धमासा, मोथा, खांड, सुगन्धबाला, निसोत, पीपल, कालानिसोत, त्रिफला और लाल चन्दन और मुलैठी। समान भाग लेकर चूर्ण मिश्रीका चूर्ण सेवन करनेसे विरेचन होकर उदरपीड़ा करके मुनक्का के शीतकषाय के साथ खिलानेसे दाह, शरीरका भारी पन और ज्वर नष्ट होता है। शरद ऋतुमें (आश्विन, कार्तिक मासमें ) भली (२३७०) त्रिवृतादिचूर्णम् (भा.प्र.ख.२।वा.र. भांति विरेचन हो जाता है । धारोष्णं मत्र युक्तं क्षीरं दोषानुल मनम् । (२३७४) त्रिवृतादिचूर्णम् पिवेद्वा सत्रिचूर्ण पित्तरक्तातानिले ॥ (च. सं. । क. अ. ७; वा. भ. । कप. अ. २) पित्तप्रधान वातरक्तमें धारोष्ण दूधमें गोमूत्र । त्रिवृतां चित्रकं पाठामजाजी सरलं वचाम् । मिलाकर पीना चाहिए अथवा उसके साथ निसोत स्वर्णक्षीरीं च हेमन्ते चूर्णमुष्णाम्बुना पिबेत् ।। का चूर्ण सेवन करना चाहिए। हेमन्त ऋतु ( अघन, पौष मास )में विरेचन (२३७१) त्रिवृतादिचूर्णम् (वा.भ.क.प.अ.२) । करानेके लिए निसोत, चीता, पाठा, जीरा, चीरका त्रियता शर्करा तुल्या ग्रीष्मकाले विरेचनम्। ग्रीष्मकाल ( जेठ, अषाढ़ मास ) में विरेचन | बुरादा, बच और स्वर्णक्षीरी ( सत्यानाशी ) की जइ, समान भाग लेकर चूर्ण करके गर्म पानी करानेके लिए समान भाग निसोत और मिश्री मिलाकर प्रयुक्त करनी चाहिए। | से खिलाना चाहिए। ( मात्रा-१ तोला। गर्म पानीके साथ (२३७५) त्रिवृतादिचूर्णम् (वृ.नि. र. । हृद्रो.) त्रिच्छठी बला रास्ना शुण्ठी पथ्या सपौष्करा। खिलाएं) (२३७२) त्रिवृतादिचूर्णम् चूर्णिता वा शृता मूत्रे पातव्या कफहृद्दे ॥ (च. सं. । क. अ. ७; वा. भ. कल्प. अ. २) कफज हृद्रोगमें निसोत, कपूरकचरी, खरैटी, त्रिवृताकौटजं वीजं पिप्पलीविश्वभेषजम् । । रास्ना, सोंड, हर और पोखरमूल समान भाग क्षौद्राक्षारसोपेतं वर्षाकाले विरेचनम् ॥ लेकर चूर्ण करके, अथवा गोमूत्रमें पकाकर सेवन वर्षाकाल ( सावन भादों मास) में विरेचन कराना चाहिए। कराने के लिए निसोत, इन्द्रजौ, पीपल और सों3 (२३७६) त्रिवृतादियोगः (ग. नि. । उदर.) समान भाग लेकर चूर्ण करके शहद और द्राक्षारस त्रिता दन्तिनीमूलं देवदाली यवासकः । ( मुनक्काके रस या काथ) के साथ खिलाना चाहिए। एकै वारिणा पीतं हन्ति सर्व जलोदरम्॥ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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