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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [३०६ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [जकारादि मर्दयित्वा वटी कार्या रक्तिकाद्वयसम्मिता। शीतल होने पर ऊपरकी हांडीमें लगे हुए संख्याके आईकस्वरसेनाऽथ दापयेज्ज्वरशान्तये ॥ फूलको तो जुदा निकाल ले और नीचेकी हांडीके रसैर्वा बहुमंजर्याः केवलेन जलेन वा। तलमें जमी हुई फटकिरीकी खील और उससे दो नवज्वरं महाघोरं वातपित्तकफोद्भवम् ॥ दो गुनी छोटी पीपल और काली मिरचको कूट सोपद्रवं त्रिदोषाख्यं जीर्णश्च विषमज्वरम् । कपड़छन करके तीनो चीजोंको घृतकुमारीके रसमें ज्वरारिरसनामा सौ नाशयेनात्र संशयः॥ : खूब घोटकर मुंगके समान गोली बनाकर सुखाले । पारा, गन्धक, कसीस, त्रिकुटा (सोंठ, मिर्च, ज्वर वाले रोगीको एक एक गोली प्रातःकाल तथा पीपल ), अतीस, हर्र और चम्पककी छाल समान सायंकाल पानीसे साबुत निगलवा दें । यह ज्वरारि भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली बना | रस दो तीन दिन में चरको निकालकर सुखी कर लीजिए तत्पश्चात् अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिला- देता है । इस योगमें जो संखिया डाला जाता है कर एक दिन तितलीके रसमें घोटकर २-२ उसको नीम्बूके रसमें या घृतकुमारीके रसमें घोट रत्तीकी गोलियां बना लीजिए। कर शुद्ध करले बाद फिटकिरीमें मिलावे और इनमेंसे १-१ गोली अद्रकके रस, तुलसी- ऊपरकी हाड़ीमें लगे हुए संख्याके फूलको १ पत्रके रस अथवा पानीके साथ देनेसे घोर नवीन शीशीमें रख छोड़े, और उसकी भी समभाग ज्वर, वातज पित्तज और कफज ज्वर, उपद्रव । तम्बाकू तथा कालीमिर्च मिलाकर ज्वरवटी बनाले। सहित सन्निपात, जीर्णज्वर तथा विषमज्वरका (मूल ग्रन्थसे ) नाश होता है। (२१७४) ज्वरारिरसः (५) (र.प्र.सु.।अ.८) (२१७३) ज्वरारिरसः (४)(रसायनसार । चि.) ___ मूतं गन्धं हिङ्गलं दन्तिवीज खट्वाङ्गयन्त्रेण समुद्धते द्वे ___ भागैर्वृद्धं कारयेच्च क्रमेण । __ मल्लस्फटीतुल्यतया गृहीते ।। चूर्ण कृत्वा मर्दितं दन्तितोये कृष्णोषणे तद्विगुणे स्फटीं तां ___ गुञ्जामात्र भक्षितं जूर्तिहारि ।। ___ कन्याद्रवै श्लक्ष्णतरं विमर्थ ।। शुद्र पारा ४ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग, वटीविधायाथ ददीत मुद्गमानां शुद्ध हिंगुल ( शिंगरफ) ३ भाग और शुद्ध द्विसन्ध्यं ज्वरिताय चैकाम् । जमाल गोटा ४ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी जलानुपानेन रसो ज्वरारि--- कजली बना लीजिए तत्पश्चात् अन्य दोनों ओष निरस्य रोगं सुखितं करोति ॥ धियां मिलाकर दन्तीमूलके 'रसमें घोटकर १-१ अर्थ--आध पाव संखिया विष, आध पाव रत्तीकी गोलियां बना लीजिए । गुलाबी फटकरी, दोनोंको खरलमें घोटकर डमरू : ___ इनके सेवनसे ज्वर नष्ट होता है । यन्त्रमें रखकर चार पहरकी अग्नि दे यन्त्रके स्वाङ्ग ( अनुपान-शीतल जल । ) For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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