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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [२९०] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [जकारादि गुञ्जामात्रां वटी कार्या बालानां सर्षपाकृतिः। (२१३५) ज्वरन्नीगुटिका सितया च समं पीता पित्तज्वरविनाशिनी ॥ । (र. प्र. सु. । अ. ८; वृ. नि. र.; र. का. धे.; र. मरिचेन प्रयुक्ता सा सनिपातज्वरापहा । रा. मुं.; यो. र. । ज्वर.; शा. ध. । र. प्र.) पिप्पलीजीरकाभ्याश्च दाहज्वरविनाशिनी ॥ भागैकः स्याद्रसाच्छद्धादेलीयःपिप्पलीशिवा। ज्वरकेसरिनामायं रसो ज्वरविनाशनः ।। आकारकरभो गन्धः कटुतैलेन शोधितः ।। . शुद्ध पारा, शुद्र बछनाग विष, सोंठ, मिर्च, फलानि चेन्द्रवारुण्याश्चतुर्भागमिता ह्यमी। पीपल, शुद्ध गन्धक, हर, बहेड़ा, आमला और | एकत्र मर्दये वर्णमिन्द्रवारुणिकारसे ॥ जमालगोटा समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धक | माषोन्मितां गुटीं कृत्वा दद्यात्सर्वज्वरे बुधः। की कजली बना लीजिए और फिर उसमें अन्य छिन्नारसानुपानेन ज्वरनी गुटिका मता ॥ ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर भांगरेके रसमें घोटकर शुद्ध पारा १ भाग, एलुवा, पीपल, हर, बड़े मनुष्यों के लिए १-१ रत्तीकी तथा छोटे बच्चों के लिए सरसों के बराबर गोलियां बना लीजिए। अकरकरा, सरसों के तेल में शोधा हुवा गन्धक और इन्हें मिश्रीके साथ सेवन करनेसे पित्तज्वर, इन्द्रायनके फल ४-४ भाग लेकर प्रथम पारे और स्याह मिर्चके चूर्णके साथ देनेसे सन्निपातज्वर, गन्धककी कजली बना लीजिए और फिर अन्य और पीपल तथा जीरेके चूर्णके साथ देनेसे औषधोंका कपड़छन चूर्ण मिलाकर इन्द्रायनके दाहयुक्त ज्वर नष्ट होता है। रसमें घोटकर १-१ मासेकी गोलियां बना (२१३४) ज्वरगजसिंहरसः लीजिए। (यो. र. । ज्व. र.रा.सु. । ज्वर; र.र. स. । अ.१२) इनमेंसे एक एक गोली गिलोयके काथके गगनदरदयुक्तं शुद्धसूतं च गन्धम् । साथ देनेसे सर्व प्रकारके ज्वर नष्ट होते हैं । महरमथ सुपिष्टं वल्लयुग्मं नरोऽद्यात ।। ज्वरनी गुटिका ज्वरहरगजसिंह शृङ्गवेरोदकेन । ( भा. प्र. । म. खं. वर; . नि. र. । ज्वरः प्रथमजनितदाहे तक्रभक्तं च भोज्यम् वृ. यो. त. । त. ५९ । र.र. प्र.) ___अभ्रक भस्म, हिंगुल, शुद्ध पारा और शुद्ध जय रस देखिए । गन्धक समान भाग लेकर १ पहरतक खूब अच्छी । (२१३६) ज्वरनीवटी (यो. स. । समु. ३ ) तरहसे खरल कर लीजिए। इसमें से २ रत्तो रस अद्रकके रसके साथ। शुद्धेन गन्धेन समो रसेन्द्रो देनेसे ज्वर नष्ट होता है। द्विभागमुक्तं गुडूचीघनस्य । म औषध खानेके बाद यदि दाह हो तो तक शिला विषं नाह्यपराजिता च भात खिलाना चाहिए। ___भागोप्यमीषां द्विगुणो नियोज्यः॥ १ रसराजसुन्दर तथा रसरत्नसमुच्चयमें इसका नाम ज्वरगजहरिरस, तथा ज्वरगजकेसरीरस है । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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