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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir लेपप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [२६९] and अथ जकारादिलेपप्रकरणम् सुगन्धवाला १ भाग, कृठ २ भाग, लोहचूर्ण ३ (२०६५) जपाकुसुमलेपः (रा.मा.। शिरो.) भाग, नागकेशर ४ भाग, तेजपात ५ भाग, मोथा कृष्णगवीमूत्रयुतैः पिष्टैरालेपितै पाकुसुमैः। ६ भाग, लाल चन्दन ७ भाग और कमलनाल ८ : भाग लेकर पानीमें महीन पीसकर लेप करनेसे शतमखलुप्तं नश्यति भवन्ति केशांश्च तत्र घनाः ___जवाके फूलोंको काली गायके मूत्रमें पीसकर पित्तकफज कुष्ट नष्ट होता है। लेप करनेसे इन्द्र लुप्त रोग ( गंज ) नष्ट हो कर । (२०६९) जातीपत्रादिलेपः (ग.नि.।मुख.) उस स्थान पर घने बाल निकल आते हैं । जातीपत्राणि जातेश्च फलं सम्पिष्य वारिणा। तस्य लेपे कृते याति मुखे दुङ्गलाञ्छनम् ।। (२०६६) जम्ग्वाम्रपल्लवादिलेपः ____ जावित्री और जायफलको पानीमें पीसकर ( वा. भ. उत्त. । अ. ३२ ) लेप करनेसे मुखकी झाई और श्यामता नष्ट होती है। जम्बाम्रपल्लवा मस्तु हरिद्रे द्वे नवो गुडः।। (२०७०) जातीपुष्पादिलेपः (वं. से. । व्र.) लेपःसवर्णकृत्पिष्टस्वरसेन च तिन्दुकम् ॥ उच्छनमृदमांसानां व्रणानामवसादनम् । जामन और आमके पते, हल्दी, दारुहल्दी जातिपुष्पं मनोहा च स्नुहीकासीसचित्रकैः ॥ और नवीन गुड़ समान भाग लेकर दहीके पानीमें चोलीके की चमेली के फूल, मनसिल, स्नुही (थोहर )का पीसकर लेप करनेसे अथवा तेन्दुको उसीके रसमें दूध, कासीस और चीतेकी जड़ । समान भाग पीसकर लेप करनेसे व्रणादिके कारण विकृत् हुवा लेकर पानी में पीसकर लेप करनेसे मृद और उन्नत त्वचाका रंग पूर्ववत् हो जाता है। मांस वाले घावों का ऊपरको उठा हुवा मांस दब (२०६७) जलकुम्भीभस्मलेपः (वं.से.|गल.) जाता है । रक्षोन्नतैलयुक्तेन जलकुम्भिकभस्मना । (२०७१) जातीफलादिलेपः (यो.र.।उपदं.) लेपनं गलगण्डस्य चिरोत्थस्यापि शस्थते ।। | जातीफलविडङ्गानि रसकं देवपुष्पकम् । जलकुम्भीकी भस्मको भिलावेके तैलमें मिला- | समभागानि सर्वाणि नवनीतेन मर्दयेत् ॥ कर लेप करनेसे पुराने गलगण्डको भी आराम हो । स्फोटानामुपदंशानां व्रणशोधनरोपणः॥ जाता है। जायफल, पायबिडंग, रसकपूर और लौंगका (२०६८) जलादिलेपः (च.सं.।चि. स्था. कु.) समान भाग चूर्ण लेकर नवनीत ( नैनीघृत )में जलवायलोह केसरपत्रप्लवचन्दनं मृणालानि। घोटकर लेप करनेसे उपदंश ( आतशक )के धाव भागोत्तराणि सिद्धं प्रलेपनं पित्तकफकुष्ठे । । शुद्ध होकर भर जाते हैं। १. रसकका शुद्धार्थ तो खमरिया होता है, परन्तु यहां रसकपूर ही अभीष्ट प्रतीत होता है क्यों कि उपदंशके व्रणों के लिए रसकपूर एक प्रसिद्ध और अनुपम वस्तु है । For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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