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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir तैलप्रकरणम् ] द्वितीयो भाग । [२६३] कौंचके बीज, क्षीर काकोली, काकडासिंगी, कचूर (२०४६) जम्मवादितैलम् (यो. र. । कर्ण.) और बच । सब चीजें समान भाग लेकर पीसलें। आम्रजम्बरवालानि मधकस्य वटस्य च । इनका कल्क ऽ। एक पाव, धी ऽ । सेर तैल 5 ॥ एभिस्तु साधितं तैलं पूतिकर्णगदं हरेत् ।। सेर और दूध ४ सेर एकत्र मिलाकर पकाएं । दूध आम, जामन, मुलैठी और बड़के पत्तों के जल जाने पर स्नेहको छानलें । इसकी अनुवासन कल्क तथा काथसे सिद्ध तैल पूतिकर्ण रोगका बस्ति देनेसे बल वीर्य और जठराग्निकी वृद्धि तथा नाश करता है। वातपित्त, मूत्र वीर्य और रजोदोष नष्ट होते हैं । (प्रत्येक वृक्षके पत्ते २०-२० तोले लेकर इति जकारादिघृतप्रकरणम् ॥ ४ सेर पानीमें पकाएं और १ सेर पानी रहने पर छान लें। कल्कके लिए प्रत्येक प्रकार के पत्र - अथ जकारादितैलप्रकरणम् १-१। तोला लें और २० तोले तैल पकाएं।) (२०४५) जम्वादितैलम् +(२०४७) जम्ब्वाद्यं तैलम् ( वा. भ. । उ. स्था. अ. १८) (च. द.; भै. र.; . मा.; र. र.; वं. से. । कर्ण.) जम्ब्बाम्रपल्लवबलायष्टीरोध्रतिलोत्पलैः । जम्ब्बाम्रपत्रं तरुणं समांशं सधान्याम्लैःसमञ्जिष्ठैःसकदम्बैःससारिवैः ॥ कपित्थकासिफलं च साम् । सिद्धमभ्यञ्जनं तैलं विसर्पोक्तवृतानि च ॥ कृत्वा रसं तं मधुना विमिश्रं जामनके पत्ते, आमके पत्ते, खरैटी, मुलैठी, स्रावापहं सम्प्रवदन्ति तज्ज्ञाः ॥ लोध, तिल, नीलोत्पल (नीलोफर), काञ्जी, मजीठ, एतैःशृतं निम्बकरञ्जतैलम् कदम्बकी छाल और सारिवा । काजीके अतिरिक्त । ससार्षपं स्रावहरं प्रदिष्टम् ।। समस्त चीजें २-२ तोले लेकर पानीके साथ जामन और आमके कोमल पत्तोंको कूटकर पीस लें, फिर ८० तोले तिलका तैल और ३२० और कैथ तथा कपासके फल एवं अद्रकको पानीके तोले (४ सेर) काजीको एकत्र मिलाकर उसमें साथ पीस कर पृथक् पृथक् बराबर बराबर रस निकाल उपरोक्त पिसी हुई ओषधियां डालकर मन्दाग्नि पर लीजिए। इन सब रसोंको एकत्र मिलाकर उसमें पकाएं। जब समस्त काञ्जी जल जाय तो उतारकर सबसे चौथाई शहद मिला लीजिए । इस मिश्रण छान लें। को कानमें डालनेसे कान बहना बन्द होता है। इस तेलकी मालिशसे परिपोट नामकः कर्ण ___अथवा इन सब चीजोंके कल्क और चार व्याधि (कानकी पालीकी सूजन) नष्ट होती है। गुने पानीके साथ नीम, करज या सरसोंका तैल ___ इस रोगमें विसर्प-रोग-नाशक घृत भी लाभ पकाकर कानमें डालनेसे भी कर्णस्राव बन्द हो पहुंचाते हैं। जाता है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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