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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir स्तप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [२२१] जाय तो उसे लाल कपास और बड़के अंकुरोंके इस खोटबद्ध रसका प्रभाव शरीर पर भी . रसमें घोटकर सुखाकर आतशी शीशीमें भरकर ऐसाही उत्तम होता है जैसाकि स्वर्णादि धातुवों पुनः बालुका यन्त्रमें उपरोक्त विधिसे पकानां पर । चाहिए।) - (१९१०) चपललक्षणगुणाः (१९०९) चपलबद्धरसः (रसे. मं.। अ. ४) ( आ. वे. प्र. । अ. १२) लाडलीकरवीरच चित्रकं गिरिकणिका। चत्वारश्चपला सिता सितहरिच्छोणा प्रभेदै पुनस्त्रीस्तन्यं टङ्कसौवीरं मषालेपं तु कारयेत ॥ मोघौ शोणितशोणकज्जलनिभौ लाक्षावदाशुद्रवात।। चपलाद्-द्विगुणं मूतं मूताद् द्विगुणकाञ्चनम्। शेषौ तु द्रवतश्चिरेण सुभगौ तौ शुध्यतःसप्तधा। नष्टपिष्टं तु तत्कृत्वा अन्धमृषागतं धमेत् ॥ कव्य द्रकजम्भलस्यसलिले संस्वेदितौ वा प्लुतौ तत्रस्थं च रसेन्द्रं च खोटं भवति शोभनम् । पाथम्याद्रसबन्धिनौ तदुपरि स्यातां तु योगानुगौ। नागं शतांशतो विद्धं गुञ्जावर्ण तु जायते॥ वृष्यौ दोषहरौ बुधैर्निगदितौ माक्षीकभूम्युद्भवौ ।। तेन नागशतांशेन विद्धं शुल्वारुणं भवेत। चतुर्धा चपल प्रोक्तः कृष्णो ऽरुणो हरित। , तेन शुल्वशतांशेन तारं विद्धश्च काञ्चनम ॥ | वङ्गवत्प्लवते वह्नौ चपलस्तेन कीर्तितः॥ यथा लोहे तथा देहे नान्यथा जायते कचित॥ चपल स्फटिकच्छायःषडस्त्री स्निग्धको गुरुः। १ भाग चपल, २ भाग पारद और ४ भाग त्रिदोषघ्नो तिवृष्यश्च रसबन्धविधायकः॥ स्वर्णको एकत्र घोटकर पिटीसी बना लीजिए। अयं तूपरसे कैश्चित्पठितोऽन्यै रसेषु च । तत्पश्चात् लागली ( कलिहारी ) करवीर ( कनेर ), विषोपविषधान्याम्लैमर्दितश्चपलस्ततः ॥ चीता, गिरिकर्णिका, सुहागा और सौवीराजनको अन्धमूषागतो ध्मातःसत्वं मुश्चति कार्यकृत् ॥ स्त्रीके दूधमें पीसकर एक अन्धभूषाके भीतर उसका चपल वर्णभेदसे चार प्रकारका होता है (१) लेप करके उसमें उपरोक्त पिट्ठीको बन्द करके सफेद, (२) काला, (३) हरित् और (४) लाल । ( तीब्राग्निमें ) धमाइये। इनमेंसे काले और लालकाले रंगके चपल इस क्रियासे खोटबद्ध (अग्नि स्थायी ) पारद । शीघ्र पिघलने वाले होनेके कारण निष्फल होते तैयार हो जाता है। हैं । शेष दोनों प्रकारके देरमें पिघलते हैं इस लिए . इसका १ भाग १०० भाग सीसेमें (पिघला वह उत्तम होते हैं। " कर ) मिलानेसे सीसा गुञ्जाके समान लाल हो। उत्तम प्रकारके चपलोको ककोड़ा, अदरख जाता है, और १०० भाग तांबेको पिघला कर और जम्भीरी नीबूके रसमें ( दोलायन्त्र विधिसे ) उसमें १ भाग यह सीसा मिलानेसे तांबेका रंग स्वेदन करने या तपा तपा कर इनमेंसे हरेकमें ७-७ लाल हो जाता है, और यह तांबा सौ गुनी बार बुझानेसे शुद्ध हो जाते हैं । चांदीको सोना बना सकता है। प्रथम दो प्रकारके ( सफेद और काले ) For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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