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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvurvana लेपप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः। [ १८९] (१८३३) चन्दनादिलेपः (ग. नि. । शिरो.) (१८३६) चिश्चापत्ररसप्रयोगः चन्दनद्वयसंयुक्तैः कुष्ठवालककेसरैः। (वै. म. र. । प. ११) क्षीराज्ययोजितैर्लेपः क्षिप्रं पित्तं शिरोतिनुत् ॥ ददौ गुडं प्रलिम्पेत्तत्स्थाः कृमयो विनश्यन्ति । सफेद चन्दन, लालचन्दन, कूठ, नेत्रबाला चिश्चापत्ररसम्वा कण्डूतिनाशमन्विच्छन् । और केसरके समान भाग मिश्रित चूर्णको दूध दादपर गुडका लेप करनेसे उसके कृमि नष्ट और धीमें मिलाकर लेप करनेसे पित्तज शिरशूल हो जाते हैं और इमलीके पत्तोंका रस लगानेसे नष्ट होता है। खाज नष्ट होती है। (१८३४) चन्दनादिलेपः ( यो. र. । स्त्री.) (१८३७) चिश्चास्वरसलेपः (वै.म.र.।पट.१६) चन्दनं मधुकोशीरं नागपुष्पं तिलास्तथा। । चिश्चापत्रस्वरसं पयसा योज्य घर्षितं कंसे। अजशृङ्गी च मञ्जिष्ठा रविमूलं पुनर्नवा। लिपं वहिनयनयोःशमयति रागाश्रुतोदसरम्भान् ॥ श्रेष्ठःशोफहरो लेपो गर्भिणीनां विशेषतः॥ । इमली के पत्तोंके रसमें समान भाग दूध मिला ___लाल चन्दन, मुलैठी, खस, नागकेसर, तिल, मेढासिंगी, मजीठ, आककी जड़की छाल और पुन कर कांसे के पात्रमें उंगलीसे अच्छी तरह घिसकर नवा; समान भाग लेकर (पानीमें ) पीसकर लेप आंखों के बाहर लेप करनेसे आंखोंकी सुर्खा, सूजन, करनेसे सूजन नष्ट होती है। अश्रुपात और पीड़ा नष्ट होती है। ___ यह प्रयोग गर्भिणीकी सूजनको नष्ट करनेके (१८३८) चित्रकादिलेपः (च. सं. । चि.अ.५) लिए विशेष उपयोगी है। चित्रकमेलाबिम्बी वृषकत्रिदर्कनागरकम् । (१८३५) चन्द्रशरादिलेपः (यो. त.। त.६३) चूर्णीकृतमष्टाहं भावयितव्यम्पलाशस्य ॥ चन्द्रशूराख्यवीजानि प्रपुत्राटस्य तानि च। क्षारेण गवां मूत्रस्रतेन तेनास्य मण्डलान्याशु। कङ्कत्या अपि बीजानि समांशत्रितयं क्षिपेत् ॥ भियन्ते च विनश्यन्ति च लिप्तान्यर्काभितप्तानि॥ सर्वद्विगुणतक्रेण सूक्ष्म सम्पिष्य साधयेत् । चीता, इलायची, कन्दूरी, बासा, निसोत, दिनत्रयं ततो वन्यगोमयेन प्रघर्षयेत् ॥ आककी जड़की छाल, और सोंउको महीन पीस तं कल्कं लेपयेत्पश्चाद्रुर्गच्छति निश्चितम् ॥ | लीजिए; तत्पश्चात् ढाककी राखको चार गुने __ हालो, पवाड़के बीज, और कंगही (अतिबला) गोमूत्रमें मिलाकर मोटे कपड़ेसे २१ बार क्षार के बीज समान भाग लेकर महीन चूर्ण करके उसे बनानेकी विधिके अनुसार चुवाकर उसमें उक्त दोगुने तक्रमें मिलाकर ३ दिन तक खरल कराइये। समस्त वस्तुओंका चूर्ण मिलाकर ८ दिन पर्यन्त दादको अरने उपलेसे रगड़ कर यह लेप अच्छी तरह घोटिए । लगानेसे वह अवश्य नष्ट हो जाता है। इसका लेप करनेसे मण्डल नष्ट हो जाते हैं। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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