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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org द्वितीयो भागः । तैलप्रकरणम् ] सीस, कनेरकी जड़ की छाल; चीता, नीलाथोथा, मोथा, स्याहमिर्च, हल्दी, दारु हल्दी, त्रिफला, भंगरा, बायबिडंग, भिलावा नीलोफर (नील कमल ), कमलकन्द, लोहका चूर्ण, बाबची, काले संभालके बीज, मीठातेलिया (मीठाविष), सुहागा, यवक्षार, सज्जीक्षार, मल्लिका (मोगरेका फूल ), देवदाली, (बिंडाल), सरसोंका तेल कलिहारीका स्वरस और पांड़का रस लेकर सबको एकत्र मिलाकर धूपमें रख दीजिए, जब औषधोंका रस सूख जाय तो तैलको छान लीजिए । इस तैको खेत के स्थान पर मलकर २ पहर तक धूप में बैठे रहना चाहिए। इस प्रकार तेज़ धूपमें बैठनेसे धीरे धीरे सफेद कुष्ट नष्ट होकर वह स्थान स्याह हो जाता है । प्रथम कुष्ट स्थान सुर्ख़ हो जाता है और फिर स्याह हो जाता है । इस तैलसे सहस्र वर्षका पुराना श्वेत कुष्ट भी निस्सन्देह नष्ट हो जाता है । इसके सिवाय यह तैल मण्डल, सिम, खुजली, भयङ्कर विसर्प, और विशेषतः मर्कटीको एकदम नष्ट कर देता है यदि इस तैलको चेहरे और मस्तक में लगाया जाय तो चेहरा स्वर्णसे उज्ज्वल कामदेव से भी अधिक सुन्दर और केसर से अधिक कान्तिमान हो जाता है । (१८०३) चित्रकमूलतैलम् (बृ. नि. र (विष) अथवा चित्रकमूलचूर्ण तैले विपाच्य मस्तके क्षुरेणच्छित्य शिरसि ब्रह्मरन्ध्रे मर्दनं कृत्वा आखुविषं नश्यति । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ १८१ ] चीकी जड़ के चूर्ण से सिद्ध तैलको शिरमें, ब्रह्मरन्ध्र के ऊपर नश्तरसे त्वचाको छीलकर मलने से चूहेका विष नष्ट होता है । (१८०४) चित्रकादितैलम् ( र. र.; च. द.; धन्वं । नासा. ) चित्रकचविकादीप्यकनिदिग्धिकाकरञ्जवीजलवणकैः गोमूत्रयुक्तं सिद्धं तैलं नासाशंसां हितम् परम् ॥ चीता, चव, अजवायन, कटेली, करञ्जवेकी गिरि और सेंधा नमक के कल्क और गोमूत्र से सिद्ध तैल नासार्श का नाश करता है I (१८०५) चित्रकादितैलम् (बृ. मा. बं. से., र. र. । क्षु. रो. ) चित्रकं दन्तिनीमूलं कोशातकी समन्वितम् । कलकं पिष्ट्वा पचेत्तैलं केशशत्रु विनाशनम् ।। चीता, दन्तीमूल, और कड़वी तूंबीसे सिद्ध तैल लगानेसे जुबों (यूका) का नाश होता है । (चित्रकादि प्रत्येक वस्तु ५ तो. तैल ६० तो. पानी २४० तो.) (१८०६) चित्रकाद्यं तैलम् (ग. नि. । तैला. २; सु. सं. । चि. स्था. अ. ८; यो त । त. ६१;) चित्रकार्कत्रिवृत्पाठामलगृहयमारकान् । सुधां वचां लाङ्गलिकां सप्तपर्ण सुवर्चिकाम् ॥ ज्योतिष्मतीम् च संभृत्य तैलं धीरो विपाचयेत् । एतदभ्यञ्जनं तैलं भृशं दद्याद्भगन्दरे ।। शोधनं रोपणञ्चैव सवर्णकरणं तथा ।। चीता, अर्क (आक), निसोत, पाठा, बाबची, कनेर, सेहुंड (सेंड ), वच, कलिहारी, सप्तपर्ण For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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