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तैलप्रकरणम् ] द्वितीयो भागः।
[ १७९] सफेद चन्दन, अगर, तालीसपत्र, मजोठ, । (१८०१) चन्दनाय तैलम् नख, पद्माख, नागरमोथा, कचूर, लाख, हल्दी, (च. स. । चि. अ. ३ ज्वर.) लाल चन्दन। प्रत्येकका चूर्ण १-१ पल (५ तोले), तैल २ सेर (१६० तोले ); भारंगी, बासा,
अथ चन्दनायं तैलमुपदेक्ष्यामः-चन्दकटेली, पीले फूलकी खरैटी और गिलोयका काथ
नशैलेयभद्राश्रयकालानुसार्यकालीयकपद्मापद्म१०० पल ( ६। सेर ).x
कोशीरसारिवामधुकप्रपौण्डरीकनागपुष्पोदीतैलको अग्निपर चढ़ाकर गर्म हो जाने पर
च्यवन्यपद्मोत्पलनलिनकुमुदसौगन्धिकपुण्डरीउपरोक्त वस्तुओंका क क डाल दीजिए और फिर
कशतपत्रविसमृणालशालूक शैवालकशेरुकानकाथ डालकर पकाइये, जब पानी जल जाय तो
न्ताकुशकाशेक्षुदर्भशरनलशालिमूलजम्बुवेत्रवेतेलको छानकर उसमें शिलारस, केसर, नख,
तसवानीरगुन्द्राककुभाशनाश्वकर्णस्यन्दनवातपोला चन्दन, कपूर, छोटी इलायचीके बीज और | पोथशालतालधवतिनिशखदिरकदरकदम्बकालौंग आदि गन्ध द्रव्य मिलादेने चाहिएं।
श्मर्यफलसर्जप्लक्षवटकपीतनोदुम्बराश्वत्थन्यग्रोयह तैल राजयक्ष्मा, खांसी, विष, कुष्ट,
धधातकीर्वोत्कटकशृङ्गाटकमञ्जिष्ठाज्योतिष्मकान्तिहीनता, · और ग्रहदोष नाशक तथा बलवर्ण
तीपुष्करवीजक्रौञ्चादनवदरीकोविदारकदली
संवर्तकारिष्टशतपर्वाश्वेतकुम्भिकाशतावरीश्रीऔर अग्निवर्द्धक है।
पर्णीश्रावणीमहाश्रावणीरोहिणीशीतपाक्योद(१८००) चन्दनाय तैलम्
नपाकीकालाबलापयस्थाविदारीजीवकर्षभक(धन्वं.; च. द.; . मा.; भै. र.; यो. र.; वं. क्षुद्रसहामेदामहामेदामधुरयमोक्तातृणशुन्यमोसे.; र. र.; भा. प्र. खं. २ । गलग.; वृ. यो.
| चरसाटरुषकबकुलकुटजपटोलनिम्बशाल्मलीत. । त. १०८)
नारिकेलखर्जुरमृद्वीकाप्रियालप्रियङ्गधन्वनात्मचन्दनं साभया लाक्षा वचा कटुकरोहिणी। गुप्तामधुकानामन्येषां च शीतवीर्याणां यथालाएभिस्तैलं श्रुतं पीतं समूलमपची जयेत् ॥ भमौषधानांकषायं कारयेत् । तेन कषायेण
सफेद चन्दन, हर्र, लाख, बच और कुटकीके द्विगुणितपयसा तेषामेव च कल्के कषायाधकल्क तथा काथसे सिद्ध तैल पीनेसे अपची मात्रं मृद्वग्निना साधयेत्तैलं । एतत्तैलं सद्योदा( कण्ठमाला भेद ) समूल नष्ट हो जाती है। हज्वरमपनयति ।।
(विधिः-तिल तैल १ सेर । काथ ४ लाल चन्दन, छरीला, सफेद चन्दन, कृष्ण सेर, कल्क पाव सेर (प्रत्येक वस्तु ४ तोले ) चन्दन, मजीठ ( अथवा गुलाब पुष्प ), पद्माख, ____x हरेक वस्तु २०-२० पल लेकर कूटकर पृथक पृथक एक द्रोण ( १६ सेर ) पानी में पकाएं और सेर शेष रहने पर छान लें ।
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