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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [१४६] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [चकारादि vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv VvvvvvvvvvvvvvvvARAN (१७११) चव्यादिचूर्णम् ( वं. से. । रा. य.) इसे धीमें मिलाकर बालकोंको चटानेसे उनके चव्यव्योषविडङ्गानि चूर्ण कृत्वा लिहेन्नरः।। अजीर्ण, श्वास, खांसी, आदि रोग नष्ट होते और सर्पिर्मधुभ्यां मुच्येत क्षयरोगान्न संशयः॥ बल, पुष्टि तथा शरीरकी वृद्धि होती है । चव, सोंठ, मिर्च, पीपल और बायबिडंगके चातुर्भद्रिका चूर्णको शहद और धोमें मिलाकर सेवन करनेसे (आयु. वि. । अ. ८; भा. प्र. । बा. रो. ) क्षय रोग अवश्य नष्ट हो जाता है। १६३२ संख्यक, प्रयोग देखिए । ( मात्रा-३-४ माशे)। (१७१४) चिश्चादिचूर्णम् । (१७१२) चातुर्जातम् ( भै. र. । परिशि.) | चिश्चापलसमायुक्तं गृहधूमं पलार्धकम् । चातुर्जातं समाख्यातं त्वगेलापत्रकेशरैः पुराणाज्येन सप्ताह लीद्दा चाखुविष हरेत् ॥ तदेव त्रिसुगंन्धिः स्यात्त्रिजातकमकेशरम् ॥x १ पल ( ५ तोले ) इमली और आधापल - दालचीनी, इलायची, तेजपात और नाग घरका धुंवा एकत्र मिलाकर पुराने धोके साथ सात केसरके योगका नाम ' चातुर्जात ' है । और दिन तक सेवन करनेसे चूहेका विष नष्ट होता है । नागकेसर रहित अन्य तीन ओषधियों के समूहको (१७१५) चिञ्चाबीजयोगः (वै.म.र.पट.६ ) 'त्रिगन्ध' या · त्रिजात' कहते हैं। चिञ्चावीजत्वचं सैन्धवं दीप्यकस्तथा। (१७१३) चातुर्जातादिसम्भारकः ( ग. नि. । बाल.) पिबेदामेन तक्रेण सोऽतिसारं जयेत्क्षणात् ॥ चातुर्जातकतालीसकुष्ठं त्रिकटुकं तथा। इमलीके बीज ( चियें ) दारचीनी, सोंठ, चविका पिप्पलीमूलं तवक्षीरं च जीरकम् ॥ सेंधानमक, और अजवायनके समान भाग मिश्रित अश्वगन्धा च सम्भारं चूर्णीकृत्य विनिःक्षिपेत् । चूर्णको (३-४ माशेकी मात्रानुसार) तक्रके साथ चूर्णाद्विगुणितं खण्डं सर्पिषा लेहयेच्छिशुम् ।। सेवन करनेसे अतिसार अत्यन्त शीघ्र नष्ट होता है। अजीर्णश्वासकासघ्नं बालानामङ्गवर्धनम् ।। (१७१६) चिञ्चाबीजादिचूर्णम् सर्वरोगहरं श्रेष्ठं बलपुष्टिकरं मतम् ॥ ( वृ. नि. र. । मसूरि.) दालचीनी, इलायची, तेजपात, नागकेसर, ये शीतलेन सलिलेन विपिष्य सम्यक् । तालीसपत्र, कूट, सोंठ, मिर्च, पीपल, चव्य, चिश्चोत्थवीजसहितां रजनीं पिबन्ति ।। पीपलामूल, बंसलोचन, जीरा, और असगन्धका तेषां भवन्ति न कदाचिदपीह देहे। चूर्ण समान भाग तथा समस्त चूर्णसे २ गुनी मिश्री पीडाकरा जगति शीतलिकाविकाराः ॥ लेकर एकत्र कर लीजिए। ___ इमलीके बीज (चियें) और हन्दीके चूर्णको xचातुर्जातमिदं वर्ण्य वह्निकृच्च विषापहम् । ( रा. नि. । व. २२) चातुर्जातक शरीरके रंगको सुधारने वाला, अग्निवर्द्धक और विषनाशक है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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