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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [१४४ ] भारत-भैषज्य-रत्नाकरः। [चकारादि NnVir-rnhvvv12WAVORMAny....... इस “चन्दनादि चूर्ण को प्रातःकाल शीतल लेकर चूर्ण कर लीजिए। इसे उष्ण जलके साथ जलके साथ सेवन करनेसे रक्तपित्त, श्वास, पित्तज सेवन करनेसे गर्भाशयके रोग नष्ट होते हैं । गुल्म, अङ्गदाह, शिरोदाह, शिरका घूमना (चक्कर ( मात्रा----३-४ माशे ) आना ), कामला, प्रमेह और पित्तज्वरका नाश । (१७०४) चन्द्रकलाचूर्णम् (वै. जी. । वि.२) होता है। तुल्यांशं सकलं किरातकटुकामुस्तेन्द्रजध्युषणम् । ( मात्रा---३-४ माशा) भागश्चन्द्रकलामित कुटजतो भागद्वयं चित्रकात्।। (१७०२) चन्दनादिलोहम् चूर्ण चन्द्रकलाभिधं गुडपयोयुक्तं च पाण्डुज्वरा( भै. र.; र. चं.; र. सा. सं.; र. र.; तीसारारुचिकामलाग्रहणिकागुल्मप्रमेहापहम् ।। र. रा. सुं. । वर०) चिरायता, कुटकी, मोथा, इन्द्रजौ, सोंठ, रक्तचन्दनहीवेरपाठीशीरकणाशिवा। मिर्च और पीपल १-१ भाग, कुडेकी छाल १६ नागरोत्पलधात्रीभिस्त्रिमदेन समन्वितः ॥ भाग और चीना २ भाग लेकर महीन चूर्ण कर लीजिए। लौहो निहन्ति विविधान् समस्तान् विषमज्वरान् इस चन्द्रकला' नामक चूर्णको गुड्युक्त लाल चन्दन, नेत्रबाला, पाठा, खस, पीपल, दूधके साथ (२-३ माशेकी मात्रानुसार ) सेवन हरी, सोंड, नीलोफर, आमला, नागरमोथा, चीता, । करनेसे पाण्ड, अर, अतिसार, अरुचि, कामला, वायबिडंग । सबका चूर्ण १-१ भाग और लोह । संग्रहणी, गुल्म और प्रमेहका नाश होता है । भस्म सबके बराबर लेकर एकत्र खरल कर लीजिए। (१७०५) चन्द्रोदयोऽगदः (वं. से. । विप.) इसके सेवनसे समस्त विषम ज्वर नष्ट होते हैं। चन्दनच शिलाकयुवकपत्रैलाब्दसर्वपाः । ( मात्रा ४ रत्ती । अनुपान मधु । ) मांसीप मकवत्सा ससुरभीभवरोचना ॥ (१७०३) चन्दनायं चूर्णम् स्पृक्काहिङ्गवम्बुलामज्जशतपुष्पाप्रियङ्गवः। ( आ. वे. वि. अ. । ७९) पिष्ट्वा सर्वविपोन्मन्था नाम्ना चन्द्रोदयोऽगदः॥ चन्दनं द्वितयं मूर्वा नीलिन्येलाद्वयं मुरा। सफेद चन्दन, मनसिल, कूठ, दालचीनी, कणाद्वयं त्रिदद्राक्षा मांसी मधुकपुस्तकम् ॥ तेजपात, इलायची, नागरमोथा, सरसों, बालछड, एतत्सर्व चूर्णयित्वा डिम्बाधारगदापहम् । पाक, इन्द्रजौ, केशर, गोरोचन, स्पृक्का, हींग, उष्णेन पयसा नारी पिबेनित्यं सुखार्थिनी ।। सुगन्धवाला, लामजकतृग (खस भेद-अभावमें सफेद चन्दन, लाल चन्दन, मूर्वा, नीलका खस) सोया और फूल प्रियंगु समान भाग लेकर पौदा, छोटी इलायची, बड़ी इलायची, मुरामांसी पीस लीजिए। ( मुरमुकी) पीपल, गजपीपल, निसोत, मुनका, यह 'चन्द्रोदयागद' समस्त विषोंका नाश जटामांसी, मुलैठी और नागरमोथा समान भाग ! करता है। For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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