SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir रसमकरणम् ] द्वितीयो भागः। [१२१] - - - - vvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv तक पहुंचने तक इसी प्रकार सेवन करते रहें और | गन्धकको कजली बना लीजिए तत्पश्चात् अन्य फिर प्रतिदिन १-१ रत्ती घटाकर सेवन करें। औषधों का चूर्ण मिलाकर खूब खरल कीजिए इसके सेवनसे सर्व प्रकारका ग्रहणीरोग नष्ट होता है। और फिर उसमें हुलहुल, बेलपत्र, और सिंघाड़ेके (१६०२) ग्रहणीकपाटो रसः (र.रा.सु. ।ग्र.)। पत्तोंका ५-५ तोले स्वरस मिलाकर तेज धूपमें रख दरदं गन्धपाषाणं तुगाक्षीाहिफेनकम् । दीजिए और सूखनेपर गोलियां बना लीजिए। तथा वराटिकाभस्म सवे क्षारण मद्देयेत् ॥ इसे २ रत्तीकी मात्रानुसार बेलपत्रके रसके रक्तिकायुग्ममानेन छायाशुष्कां वटीं चरेत् । साथ सेवन करने और दहीभात खानेसे ग्रहणी रोग ग्रहणीं विविधां हन्ति रक्तातीसारमुल्वणम् ॥ नष्ट होता है। ____ शुद्ध हिंगुल (शंगरफ़), शुद्ध गन्धक, बंस- ___यह गोलियां पाण्डु, अतिसार, शोथ और लोचन, अफीम और कौड़ी भस्म समान भाग ज्वरका भी नाश करती हैं। लेकर सबको दूधमें घोटकर २-२ रत्तीकी गोलियां (१६०४) ग्रहणीकपाटो रसः बनाकर छायामें सुखा लीजिए। (भै. र.; र. सा. सं.; र.रा. सुं.; धन्व. । ग्रह०) इनके सेवनसे अनेक प्रकारकी संग्रहणी और रक्तातिसार नष्ट होता है। टङ्कणक्षारगन्धाश्मरसं जातीफलन्तथा । तथा खदिरसारश्च जीरकं श्वेतधूनकम् ॥ (१६०३) ग्रहणीकपाटो रसः कपिहस्तकबीजश्च तथैव वकपुष्पकम् । (भै. र.; र. सा. सं,. र. र., र. रा. सुं. । ग्रह.) | एषां शाणं समादाय श्लक्ष्णचूर्णानि कारयेत् रसगन्धकयोश्चापि जातीफललवङ्गयोः।। | बिल्वपत्रककासिफलं शालिश्च दुग्धिका । प्रत्येकं शानमानश्च श्लक्ष्णचूर्णीकृतं शुभम् ।। । शालिश्च मूलं कुटजत्वचः कश्चटपत्रजम् ।। मूर्यावर्तरसेनैव बिल्वपत्ररसेन च । सर्वेषां स्वरसेनैव वटिकां कारयेद्भिषक् । शृङ्गाटकस्य पत्राणां रसैः प्रत्येकशः पलैः ॥ रक्तिकैकप्रमाणेन खादयेदिवसत्रयम् ॥ चण्डातपेन संशोष्य वटिकां कारयेद्भिषक् । दधिमस्तु ततः पेयं पलमात्रप्रमाणतः। बिल्वपत्ररसेनैव दापयेद्रक्तिकाद्वयम् ॥ अपि योगशताक्रान्तां ग्रहणीमुद्धताञ्जयेत् ।। दना च भोजनीयञ्च ग्रहणीरोगनाशनः। । आमशूलं ज्वरं कासं श्वासं शोथं प्रवाहिकाम् । पाण्डुरोगमतीसारं शोथं हन्ति तथा ज्वरम् ।। | रक्तस्रावकरं द्रव्यं कार्य नैवात्र युक्तितः॥ ग्रहणीकपाटनामा रसः परमदुर्लभः॥ सुहागेकी खील, जवाखार, शुद्ध गन्धक, शुद्ध शुद्ध पारा, शुद्ध गन्धक, जायफल और लौंग पारा, जायफल, खैरसार, जीरा, सफेद राल, कौचके १-१ शाण (४ माशे) लेकर प्रथम पारे और बीज और अगथियाके फूल बराबर बराबर लेकर १ बिल्वं । २ च मधुलिका । ३ तथा चोरकपुष्पकमिति पाठान्तराणि । भा०१६ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy