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रसप्रकरणम् ]
द्वितीयो भागः।
[९७]
कुष्ठान्यथाष्टादशरोगसंघा
बाराही मधुकं कुष्ठं भृङ्गराज हरिपिया । निवारयत्येव च राजयोगम् । एकैकस्वरसेनैव भावयेदशासरम् ॥३२॥ कर्पोन्मिते सेवित एति मयों
घर्मयेद्भावयेन्नित्यममृतीकरणं यथा । वीर्यश्च पुष्टिं बलमनिदीप्तिम् ॥ पिप्पली पिप्पलीमूलं लवङ्गं नागकेशरम् ॥३३ वमनैः रेचनैः पूर्व देहशुद्धिं समाचरेत् । त्रिफलां पद्मकं बीजं समांशश्च विनिक्षिपेत् । लवणाम्लानि शाकानि द्विदलानि तथैव च ॥ शर्करा मधुसंयुक्तं माषमात्रं च सेवयेत् ॥३४ स्त्रियश्चारोहणं यानं सदा चैतानि वर्जयेत् ॥ शाल्यनं च सगोधूमं घृतं क्षीरं सशर्करम् । __ शुद्ध गन्धकको गोदुग्धकी ३ भावना तथा सेवयेन्नित्यं कृष्णां च बलीपलितनाशनम् ॥३५ दालचीनी, तेजपात नागकेसर, इलायची, गिलोय, जरां तु नाशयेत्पुंसां षण्ढत्वं वहिमान्यताम् । हैड, बहेड़ा, आमला, सोंठ, भांगरा और अद्रकमेंसे कुष्ठानाञ्च दशाष्टानां वाताशीति निवारणम्।।३६ प्रत्येकके रस या काथको ८-८ भावना देकर विंशतिं च प्रमेहाणाम् मूत्रकृच्छ्राणि षोडश । उसमें समान भाग मिश्री मिला लीजिए। व्रणराज गण्डमालां गुदकीलं भगन्दरम् ॥३७ इस “गन्धक रसायन" को वमन विरेचनद्वारा देह- गुल्मप्लीहविकारघ्नं रजोदोषं हलीमकम् ।। शुद्धि करके प्रतिदिन १। तोलेकी मात्रानुसार स्तम्भनं वृष्यमायुष्यं सर्वामयनिवारणम् ॥३८ सेवन करनेसे धातु क्षय, प्रमेह, अग्निमांद्य, शूल शुक्रमेहादिदोषाणां नाशनं परमं मतम् उदररोग और अठारह प्रकारके कुष्ट नष्ट होते हैं। देहं सुवर्णवर्णाभं दिव्यत्वं च न संशयः॥३९॥
इसके सेवन कालमें लवण, अम्ल, शाक, सर्वभूतहितं गोप्यं गन्धकाख्यं रसायनम् ।। सर्व प्रकारकी दालें, स्त्रीप्रसंग, और सवारीका परि- मिट्टीके बरतनमें दूध भरकर उसके मुखपर त्याग करना चाहिए।
एक कपड़ा बांध दीजिए, और उस पर १०० पल (व्यव.मा.-२ माशा, प्रातःसाथ, दृधके साथ।) । (६। सेर ) गन्धकका महीन चूर्ण बिछाकर उसके (१५३४)गन्धकरसायनम् (३)
ऊपर दूसरा मृत्तिकापात्र उल्टा ढककर दोनोंकी ___ (वृ. यो. त. । त. ११८) सन्धिको भली भांति बन्द कर दीजिए और एक गन्धं पलशतं ग्राह्यं मूक्ष्मचूर्णश्च कारयेत ॥२८ गढेमें रखकर ऊपरवाली हांडो पर आधा पहरतक भाण्डगर्भ क्षीरपूर्णे तन्मुखे वस्त्रबन्धनम्। आग जलाइये । गढ़ा इतना गहरा होना चाहिए गन्धं तस्योपरि क्षिप्त्वा ततो भाण्डमधोमुखम् ॥ कि जिसमें नीचेकी हांडी कनारों तक आजाय तत्सन्धिबन्धनं कृत्वा तदर्य वह्निदीपनम् । . और उसके चारों ओर स्थान खाली न रहे । यामाधै पुटसंयुक्तं स्वागशीतलमाहरेत् ॥३० हाण्डीके स्वांग शीतल हो जाने पर गन्धक तद् गन्धं चूर्णितं कृत्वा अजाक्षीरेण भावयेत् । को पीस लीजिए और फिर उसे बकरीके दूध, इक्षुदण्डरसश्चैव अमृतामधुगोक्षुरम् ॥३१ ईखके रस, गिलोयके रस, मधु, गोखरु, बाराही
भा० १३
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