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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org द्वतीयो भागः रसमकरणम् ] इसे प्रातःकाल तक्रके साथ सेवन करनेसे आठ प्रकारकेवर और कष्टसाध्य अतिसार नष्ट होते हैं । ( प्र. वि. प्रथम पारे गन्धकको अलग घोटकर कजकी बना लीजिए । मात्रा १ से २ माशे तक ।) (१४९९) गङ्गाधररसः (र. का. घे । अति.) शुद्धमृतं शुद्धगन्धमभ्रकं मारितं तथा । कुटजातिविषं लोघं विल्वमज्जा च धातकी ॥ वासरत्रितयं ममहिफेनस्य वल्कलैः । रसो गङ्गाधरो नाम देयं बलद्वयं खलु ॥ गुडतानुपानेन सोऽतिसारं विनाशयेत् । प्रवाहिकाञ्च ग्रहणीं सायम्प्रातश्च दापयेत् ॥ शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, अभ्रक अस्म, कुड़ेकी छाल, अतीस, लोध, बेलगिरी और घाय फूल समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली कर लीजिए तत्पश्चात् उसमें अन्य औषधियोंका महीन चूर्ण मिलाकर ३ दिन तक पोस्तके डोडेके पानी में घोटकर ( गोलियां बना लीजिए ) इसे २ बल्ल ( ४ रत्ती ) की मात्रानुसार गुडयुक्त तक के साथ प्रातः सायम् सेवन कराने से अतिसार, प्रवाहिका और ग्रहणी रोग नष्ट होता है। (१५००) गङ्गाधरो रसः } ( वृ. नि. र. र. चंर रा. सुं., वै. र.' । अति. मुस्तमोचरसं लोधं कुटजत्वक् तथैव च । बिल्वास्थि धातकीपुष्पमहिफेनं च गन्धकम् ॥ शुद्धं हि पारदं चैव सर्वमेकत्र मर्दयेत् । रसो गङ्गाधरो नाना मासमात्रं प्रयोजयेत् ॥ १- पाठ भिन्न है, प्रयोग समान है । Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir [ ८७ ] । वलमात्रमिदं खादेद्गुडतक्रसमन्वितम् । सर्वातीसारं ग्रहणीं प्रशमं याति वेगतः ।। पथ्ये तक्रोदनं देयं सात्म्यं ज्ञाला भिषग्वरः ॥ मोथा, मोचरस, लोध, कुड़ेकी छाल, बेलगिरी, वायके फूल, अफीम, गन्धक, और शुद्ध पारद समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली बना लीजिए: पञ्चात् अन्य ओषधियोंका महीन चूर्ण मिलाकर खरल कर लीजिए । इसे १ वछ २ रत्ती ) की मात्रानुसार गुड़युक्त के साथ ? मास तक सेवन करने से समस्त प्रकार के अतिसार, और ग्रहणी रोग नष्ट हो जाते हैं। इस पर विचारपूर्वक तक्रभातका पथ्य देना चाहिए । ( १५०१) गजकेशरी (बृ. नि. र. । शू. रो. ) शुद्धतं द्विधा गन्धं यामैकं मर्दयेत् दृढम् | द्वयोस्तुल्ये शुद्धताम्रसम्पुटे तन्निरोधयेत् ॥ उर्ध्वधो लवणं दत्वा मृद्भाण्डे धारयेद्भिषक् । ततो गजपुटे पक्त्वा स्वांगशीतं समुद्धरेत् ॥ सम्पुटं चूर्णयेत्सूक्ष्मं पर्णखण्डे द्विगुंजकम् । भक्षयेत्सर्वशूला हिङ्गुगुण्ठीसजीरकम् ॥ वचामरिचचूर्ण कर्षमुष्णजलैः पिवेत् । असाध्यं नाशयेच्छूलं रसोयं गजकेसरी | १ भाग शुद्ध पारद और २ भाग शुद्ध गन्धकको १ पहर तक भली भांति खरल करके इस कजलीको इसके समान वजनी ताम्र सम्पुट में बन्द करके उसे मिट्टी के शरावों में ऊपर नीचे सेंधाaarat चूर्ण रखके बन्द कर दीजिए और कपड़ For Private And Personal
SR No.020115
Book TitleBharat Bhaishajya Ratnakar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
PublisherUnza Aayurvedik Pharmacy
Publication Year1928
Total Pages597
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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