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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८९४) अष्टांगहृदये। अ.३० - - उपनाहोनिलहरैस्तिकर्मसिराव्यधः ७ | कफज स्लीपद की चिकित्सा । अर्थ--थोडे दिन की प्राथ में रोगी को सिरामगुष्ठके विश्वाकफजे शीलयेघवान् साहचर का तेल पान करना चाहिये । इस सौद्राणि कषायाणि वर्धमानास्तथाभयाः में वातनाशक तेलों का उपनाह वस्तिकर्म लिंपेत्सर्षपवार्ताकीमूलाभ्यां धान्ययाथवा तथा सिराव्यध भी हितकारी हैं । ___ अर्थ-कफज श्लीपद में अंगूठे की फस्द - अर्बुद की चिकित्सा । खोलकर रागी को जौका अन्न खानेको दे, अर्बुरे ग्रंथिवत् कुर्यायथास्वंसुतरां हितम | इसमें शहत मिले हुए कषायगुण युक्त द्रव्य अर्थ-अर्बुद रोग में सब प्रकार से ग्रंथि हितकारी होते हैं । इसमें बर्धमान हरीतकी के समान चिकित्सा करना चाहिये । का सेवन हितहै । इसमें सरसों और बेंगन __वातज इलीपद का उपाय । की जड़ का लेप, अथवा जबासे का लेप श्लीयदेऽनिलजेविध्ये स्निग्धस्विनोपनाहिते करना चाहिये । सिरामुपरि गुल्फस्य द्वयंगुले पाययेच्च तम् अपची की चिकित्सा । मासमेरंड तैलं गोमूत्रेण समान्वितमू । ऊवधिः शोधन पेयमपच्यांसाधितंघृतम् जीणे जीर्णान्नमश्नीयाच्छुठीशूतपयोन्वितम् तीद्रवतीत्रिवृताजालिनीदेवदालिभिः १३ त्रैवतं वा पिबेदेवमशांतावग्निना रहेत् १०शीलयेत्कफमेदोघ्नं धूमगंडूषनाव नहर ! . गुल्फस्याधः सिरामोक्षः सिरयाऽपहरेद्रक्तं पिवेन्मत्रेणता १४ अर्थ-वातज श्लपिद में स्नेह द्वारा स्निग्ध ___ अर्थ -अपची रोग में वमन विरेचन के स्वेद द्वारा स्विन्न और उपनाह द्वारा उप द्वारा उपर और नीचे के अंगों का शोधन नाहित करके टकने से दो अंगुल ऊपर फस्द करके दन्ती, द्रवंती, निसोथ, कापातकी खोलदे । और उस रोगी को एक महिने ( कडवी तोरई ) और देवदाली इन सब तक गोमूत्र में अरण्ड का तेल मिलाकर द्रव्यों के साथ सिद्ध किया हुआ घी पान पान करांव । तेल के पच जाने पर पुराने करना चाहिये । कफ मेद नाशक धूप, शाली चांरलों का भात साठ डालकर गण्डूष और नस्यका प्रयोग हितकारी है । औटाये हुए दूध के साथ सेवन करावै । नस में नश्तर लगाकर रुधिर निकाले और अथवा त्रैवृत घृत का पान करावै, इन गोमत्र में रसौत मिलाकर पान करावे । उपायों से भी शांत न होने पर अग्नि स अपक्व ग्रंथियों पर लेप । दग्ध कर और टकने के नीचे फरद ग्रंथीनपक्कानालिंपेन्नाकुलीपटुनागरैः। खोले। | स्विन्नान लवणपोटल्या कठिनाननुमर्दयेत् पित्तज इलीपद की चिकित्सा। अर्थ -अपक्क ग्रंथि पर नाकुली, पांशु पैत्ते सर्व च पित्तजित् । लवण, और सोंठ का लेप करना चाहिये । अर्थ-पित्तज इापद में सब प्रकार की | कठोर ग्रंथि पर सेंधनमक की पोटली से पित्तनाशनी क्रिया करना हितकारक है। स्वेदन करके अंगूठे से मर्दन करें। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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