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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत । (८६५) - ORDP संसर्गबण के लक्षण ॥ कष्टसाध्य घाव । द्वाभ्यां त्रिभिश्वसर्वेश्च विद्यालक्षणसंकरात् कृच्छ्रसाध्योक्षिदशननासिकापांगनाभिषु । ___ अर्थ-दो दो दोष वा तीन दोष से युक्त | सेवनीजठरश्रोत्रपार्यकक्षास्तनेषु च १५ घाव के लक्षण मिले हुए दोष के लक्षणों अर्थ--आंख, दांत, नाक, अपांग, नाभि, के सदृश होते है। सीमन, पेट, कान, पसली, कक्षा और स्तन शुद्ध ब्रण के लक्षण | में होनेवाले घाव कष्टसाध्य होते हैं। जिहाप्रभोमृदुःश्लक्ष्णःश्यावौष्ठपिटिकासमा अन्य दुस्साध्य व्रण ॥ किंचिदुन्नतमध्यो वा व्रगःशुद्धोऽनुपद्रयः। फेनपूयानिलवहः शल्यवानू निर्वमी। अर्थ-जो घाव जिहवा के सदश मृदु, भगंदरीतर्वदनस्तथा फटयस्थिसंभितः।इलक्ष्य होता है तथा जिसके किनारे और कुष्ठिनां विषजुष्टानां शोषिणां मधुमेहिनाम् पिटिका श्याववर्ण के होते हैं, जो बीच में व्रणाकृच्छ्रेगसिद्धयंतियेपांच स्युर्बणे व्रणाः ___ अर्थ--जिन घावों से झाग और बायु कुछ उठा हुआ होता है । वह घाव उपद्रव निकलते हैं, जिनमें शल्य होता है, या जो रहित और शुद्ध होता है । | ऊपर को स्राव नहीं करते हैं, जिस भगंदर व्रण को दुस्साध्यत्व ॥ का मुख भीतर को होता है, जो कमर की स्वगामिषशिरास्त्रायुसंध्यस्थीनि प्रणाशयाः कोष्ठोमर्म च तान्यष्टोदुःसाध्यान्युत्तरोत्तरम् हड्डी में होता है, तथा कोढ, विष, शोष और अर्थ--त्वचा, मांस, शिरा, स्नायु, संधि, मधुमहा के घाव, तथा जा घाव मधुमेही के घाव, तथा जो घाव के भीतर अस्थि कोष्ठ और मर्म, ये आठवणके स्थान है | घाव होता है, ये सव दुःसाध्य होते हैं । इनमें से उत्तरोत्तर दुःसाध्य है, अर्थात् त्वचा | । असाध्य व्रण । | नैव सिद्धयति वीसर्पज्वरातीसारकासिमाम् के व्रण से मांस का व्रण, गांस के व्रण से | | पिपासूनामानिद्राणां श्वासिनामविषाकिनाम् शिरा का व्रण कष्टसाध्य होता है, इसी तरह | भिन्ने शिरकपाले वा मस्तुलुंगस्य दर्शने । और भी जानो । ___ अर्थ-विसर्प, ज्वर, अतिसार, खांसी, सुसाध्य के लक्षण तृषा, निद्रानाश, श्वास, अजीर्ण, इन सब सुसाध्यः सत्त्वमांसाशिवयोबलवति व्रणः। रोगों से पीडित रोगी के व्रण अच्छे नहीं वृत्तो दीर्घत्रिगुटकश्चतुरस्राकृतिश्च यः । होते है, अथवा जिसके सिरकी हड्डी टूटफर तथास्किमायुमेढोष्टपृष्ठांतर्वक्रमगडयोः। भेजा बाहर निकल आता है वह भी अच्छा अर्थ --सत्य, मांस, अग्नि, वय और नहीं होता है । बलयुक्त पुरुष का घाव सुसाध्य होता है, . गोल, बड़ा, त्रिपुट, और चतुकोण घाव भी साध्यत्रणको असाध्यता । स्गायुक्लेदात्सिराच्छेदागांभीर्यात्कृमिभक्षणात् सुसाध्य है, तथा कूल्हे, गुदा, लिंग, पीठ, अस्थिभेदात्सशल्यत्वात्सविषत्वामुख के भीतर और कपोल में हो, ये सब दतर्कितात् । घाव सुसाध्य होते हैं। मिथ्याबंधादतिस्नेहाद्रौक्ष्यारोमातिघट्टनात् १०९ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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