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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८६२) अष्टांगहृदय । अ० २४ सर्वान् मूर्धगदान हंति पलितानि च. महामायूर घृत । शीलितम् ॥४५॥ एतेनैव कषायेण घूतप्रस्थं विपाचयेत् ॥ __अर्थ-पुंडरिया, मुलहटी, पीपल, चंदन चतुर्गुणेन पयसा कल्कैरेभिश्च कार्षिकैः । और नीलकमल इनके कल्क में और आमले जीबंतीत्रिफलामेदामृहीकादिपरूषकैः ॥ के रसमें तेलको पकाकर इस तेल का नस्य समंगाचविकाभागीकाश्मरीकर्कटायैः । आत्मगुप्तामहामेदातालखर्जूरमुस्तकैः ।। और अभ्यंजन द्वारा प्रयोग करे, इससे मृणालविंसखर्जूरयष्टीमधुकजीवकैः ।। पलित और सब प्रकार के सिरमें होनेवाले शतावरीविदारीक्षुहतीसारिवायुगः ॥ रोग नष्ट हो जाते हैं । दूर्वाश्वदंष्ट्रर्षभकशृंगाटककसेरुकैः ॥ अन्य नस्य । | रानास्थिरातामलकीसूक्ष्मैलाशठिपौष्करैः। बरीजीवतिनिर्यासपयोभिर्यमकं पचेत् ।। पुनर्नवातवक्षीरीकाकोलीधन्वयासकैः। जीवनीयैश्च तन्नस्यं सर्वजत्रूवरोगजित् ॥ मधूकाक्षोटवाताममुंजाताभिषुकैरपि ॥ अर्थ-सितावर और जीवंती का क्वाथ, महामायूरमित्येतन्मयूराद्धिकं गुणैः । | धात्विद्रियस्वरभंशश्वासकासार्दितापहम् । दूध और जीवनीय गणका कल्क इनके साथ योन्यसृक्शुक्रदोषेषु शस्तं वंध्यासुतप्रदम् । घी और तेलको मिलाकर पाक करे । इसकी अर्थ-ऊपर लिखहुऐ मायूर घृतोक्त कषाय नस्य लेने से ग्रीवा से ऊपर होनेवाले संपूर्ण | में चौगुना दूध मिलाकर एक प्रस्थ घीको पकावै सेग नष्ट हो जाते हैं। और उसमें नीचेलिखे हुए द्रव्य प्रत्येक एक एक मायूर घृत । कर्ष लेकर मिलादेवै, वे द्रव्य ये है, यथामयूरं पक्षपित्तांत्रपादपिरतुंडवर्जितम् ।। जीवंती, त्रिफला, मेदा, दाख,फालसा, मजीठ दशमूलवलारामामधुकस्निपलैर्युतम् ॥ नले पस्त्वा घृतप्रस्थतस्मिन्क्षीरसमंपचेत् चव्य, भांडगी, खमारी,काकडासिंगी, कैंच, कल्कितैर्मधुरद्रव्यैः सर्वज+रोगजित् ॥ | महामेदा, ताल, खिजूर, मोथा, कमलनाल, तभ्यासीकृतं पान वस्त्यंभ्यजननावनैः। । कमल कन्द, छुहार', मुलहटी, जीवक, __ अर्थ-पंख, पित्त, आंत, पंजा, विष्टा | सितावर, विदारीकन्द, ईख, बड़ाकटरी, दोनों और चोंचको दूर करके मोरका मांस लेवे, अनन्तमूल, दूब, गोखरू, ऋषभक, सिंहाडा, तथा दशमूल, बच, रास्ना, और मुलहटी कसेरू, रास्ना, शालपर्णी, भूम्यामलक, प्रत्येक तीन पल लेकर जलमें पकावै, चौ- छोटी इलायची, सज्जी, पुहकरमूल, सांठी, थाई शेष रहने पर उतार कर छानले । फिर | | बंशलोचन, काकोली, दुरालभा, मुलहटी, इस काथमें एक प्रस्थ दूध और एक प्रस्थ | अखरोट, बादाम, मुंजातक और पिस्ता इन घी मधुरगणोक्त द्रव्यों के कल्कके साथ पाक सव द्रव्यों का कल्क डालकर पाक विधि से करके पान, अभ्यंजन, वस्ति और नस्य पाक करें । यह महा मायूर घृत है, इस में द्वारा इस घृतका सेवन करने से ग्रीवासे उपर | मयूर घृत की अपेक्षा गुण अधिक होते हैं । के भागमें होनेवाले संपूर्ण रोग नष्ट होजातेहैं । इसके सेवन से धातु और इनद्रियों की दुर्यलता For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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