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उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत ।
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द्रव्यों को बुरक कर व्रणमें हितकारी संपूर्ण सीव्ये गण्डं ततः सूच्या सेविम्या: नियमों का पालन करना चाहिये । सातदिन
पिचुयुक्तया।
| नासारछेदे च लिखितेपरिवोपरि त्वचम् पाछे कच्चा तेल लगा लगाकर धीरे धीरे रुई
| कपोलबंधं संदध्यात्सीव्येन्नासां च यत्नतः को हटादेवै ।।
नाभ्यामुक्षिपेदंतः सुखोच्छ्वासप्रवृत्तये ... कर्णवर्द्धन की रीति
| आमतैलेन सिक्त्वा तु पतंगमधुकांजनैः । सुरुढं जातरोमाणं श्लिष्टसंधिसमस्थिरम् । शोणितस्थापनैश्वान्यैः सुश्लक्ष्णैरवचूर्णयेत् सुषमागं सुरागं च शनैःकर्ण विषर्धयेत् ॥ ततोमधुघृताभ्यक्तं बद्धवा चारिकमादिशेत् ___ अर्थ-जब फटा हुआ कान अच्छी तरह शात्वावस्थांतरं कुर्यात् सद्योव्रणविधि ततः भर जाय, रोम उग आवें, छटी हुई संधि | छिद्याद्र्ढेऽधिकं मासं नासोपांते च चर्मवत् दृढ हो जाय, सुन्दर रूप और रंग हो जाय
| सीब्येत्ततश्च श्लक्ष्णं हीनं संवर्धयेत्पुनः । तब कानको धीरे धीरे बढाना चाहिये ।
अर्थ--निस युवा मनुष्य की नाक न हो .. कर्णवर्द्धक अभ्यंग। और नाक लगानी हो तो प्रथम उसको जलशूकः स्वयंगुप्ता रजन्यौ वृहतीयम् । विरेचनादि द्वारा शुद्ध करे और फिर कटी अश्वगंधावलाहस्तिपिप्पलीगौरसर्षपाः ५३ | हुई नाक के बराबर एक पत्ता ले और उस मूलं कोशातकाश्वघ्नरूपिकासप्तपर्णजम् । पत्ते के बराबर कपोल से त्वचा काटकर छुछुदरीकालमृतागृहंमधुकरीकृतम् ५७ ॥ अतूका जलजन्माच तथा शावरकन्द कम् ।
| नाक को खुरचकर उसको जोडदे और गंडप्रभिः कल्कै खरं पश्यं सतैलं माहिषं घृतम् स्थल के व्रणको तथा नासिका को जो सीने हस्त्यश्वमुत्रेण परमभ्यगार्कणेवधनम्॥ योग्य हों तो सी देवे । और श्वास के सुख
अर्थ-सिवार, केंच, दोनों हलदी, दोनों पूर्वक आने जाने के लिये इस कृत्रिम कटेरी, असगंध, खरैटी, गजपीपल, सफेद नासिका के छिद्रको ऊंचा कर देना चाहिये सरसों, तोरई, कनेर, आक और सातला की फिर कच्चा तेल लगाकर पतंग, मुलहटी और जड, अपने आप मरी हुई चकचूंदड, शहत । रसौत को पीसकर बुरकदे । फिर इसपर की मक्खी का छत्ता, पेचापक्षी, जोक और शहत और घी लगाकर परिचारक को लहसन इन सबके कल्कके साथ भैसका घी
करने योग्य कामों का उपदेश देवै । फिर और तेल, हाथी और घोडे का मूत्र इन सब
अवस्थान्तर पर दृष्टि देकर सद्योव्रणचिकिका खरपाक करके कान पर लगाने से सितोक्त विधिका अवलंबन कर, इस तरह कान बढते हैं ।
जब नाक का व्रण भर जाय और उसके नासासंधान ।
इधर उधर मांस अधिक हो, उसको फिर अथफुयाद्वयस्थस्य छिन्नांशुद्धस्य नासिकाम् सीमे और जो कम हो तो बढाये। छिद्यान्नासासमं पत्र तत्तल्यंच कपालतः।। त्वङमांसं नासिकासन्ने रक्षस्तत्तनुता
छिन्नोष्ठ में कर्तव्य । नयेत् ।। ६० ॥ निवेशिते यथान्यासं सधश्छेदेऽप्ययं विधिः
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