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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir म. ४ उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत । (७४५) दृष्ट्वा च रक्तपांसं वा लिहानंदशनच्छदौ फटी चीर लपेट लेना, तिनुकों की माला इसंतमन्नकाले च राक्षसाधिष्ठित वदेत् । पहनना, काठ के घोडे पर चढना, कूडे पर अर्थ-क्रोधयुक्त दृष्टि, संसंभ्रम भृकुटी | बैठना,बहुत भोजन करना इन लक्षणों के होने को इधर उधर फेंकना,प्रहार करना,दौडना, पर जान लेना चाहिये कि यह मनुष्य पि. शब्द करना, भयानक मुखबनाना, विना ! भोजन किये भी बलवान् रहना, नींद का | शाच से गृहीत है। नाश होजाना, रात्रिमें घूमना,निर्लज्ज होना प्रेतगृहीत के लक्षण । प्रेताकृतिक्रियागंधं भीतमाहारविद्विषम् । अपवित्र रहना, शूर, फर, कर्कष बोलना, | तृणच्छिदं च प्रेतेन गृहीत नरमादिशेत् । क्रोधकरना, लाल माला, स्त्रीमें रत रहना, । ___ अर्थ-प्रेतकी सी सूरत कर्म और गंध, मद्य और मांस से प्रेम रखना, रक्त और भययुक्त मन, आहार से द्वेष, और तिनुके मांसको देखकर ओष्ठों को चाटना, भोजन तोडना इन लक्षणों से युक्त मनुष्य प्रेत से करते करते हंसना ये सब लक्षण राक्षसों गृहीत होता है। द्वारा आक्रांत होने पर होते हैं। कूष्मांडग्रहीत के लक्षण । पिशाच के लक्षण । बहुप्रलापं कृष्णास्यं प्रधिलंपिनयायिनम् । अस्वस्थचितं नैका तिष्ठतं परिधाविनम् । शूनप्रलयवृषणं कूष्मांडाधिष्टितं वदेत् । उच्छिएनुत्यगांधर्वहासमद्यामिपप्रियम् ३० अथे- बहुत बकना, मुख पर कालापन, निर्भसनादीनमुखं रुदंतमनिमित्ततः। धीरे धीरे ठहरते हुए चलना, अंडकोषों पर नलिखतमात्मानं रूक्षध्वस्तवपुःस्वरम्३१) स्तवपुःस्वरम् ३१ सूजन और लटक पडना ! इन सब लक्षणों भावेदयंत दुःखानि संबद्धाबद्धभाषिणम् । नप्रस्मृति शून्यरति लोलं ननं मलीमसमा से कूष्मांड गृहीत समझना चाहिये । रथ्यावेलपरीधानं तृणमालाविभूषणम् । निषादग्रहीत के लक्षण । भारोहंतं च काष्ठाश्वं तथा संकरकूटकम् । गृहीत्वा काष्ठलोष्टादि भ्रमंतं चीरवाससम् बहाशिनं पिशाचेन विजानीयादधिष्टितम्। नग्नं धावतमुत्रस्तदृष्टि तृणविभूषणम् । अर्थ-चित्तमें उद्विग्नता, एक जगह न श्मशानशून्यायतनं रथ्यैकद्रुमसेविनम् । तिलानमद्यमांसेषु सततं सकलोचनम् । बैठना, इधर उधर दौडना, उच्छिष्ट भोजन, निषादाधिष्टितं विद्याद् वदंतं परुषाणि च. नाचना, गाना, हंसना,मद्य और मांसमें प्रे- अर्थ-लकडी वा मिट्टी को लेकर चाहै म रखना, धमकाने से दीनमुख होजाना,वि. जहां घूमना, फटे हुए चीर कतीर पाना, ना कारण रोना, नखोंसे शरीर पर लिखना, नंगा रहना, दौडना, भयान्वित दृष्टि होनों शरीरका रूक्ष और पतित हो जाना, मदा तिनुके पहरना, मरघट में वा सूने घर में दुख ही दुख की आयोजना, जो मनपै भाव | रहना, गलियों में घूमना, वृक्ष एर चढना, सोई बकना,ज्ञान नष्ट हो जाना, एकान्त अ. तिलान, मद्य और मांस पर निरंतर दृष्टि छा लमना, चंचलता, नंगारहना, मलीनता रखना और कर्कश शब्दों का बोलना । ०४ For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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