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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत । (७४३) एकस्य शून्येऽवस्थानं श्मशानादिषु | चादिग्रह कृष्णपक्ष की नवमी और द्वादशी वा निशि ॥ ६ ॥ को तथा पर्वोके दिन, पितृग्रह दशमी और दिग्वासस्त्वं गुरोनिंदा रतेरविधिसेबनम्। । अशुचेर्देवता दिपरसूतकसंकरः ॥ ७ ॥ अमावास्याको तथा इनसे अतिरिक्त और होममंत्रबलीज्यानां विगुणं परिकर्म च।। गुरुवृद्धादिग्रह अष्टमी और नवमी के दिन समासादिनचर्यादिप्रोक्ताचारव्यतिक्रमः । मनुष्य पर आक्रमण करते हैं । ये सब ग्रह अर्थ-पापकिया के आरंभका नाम छिद्र प्राय. संधिकाल में आक्रमण किया करते हैं। है, यह अनिष्ट कमों का पाक अर्थात् फल देवगृह गृहीत के लक्षण । है । निर्जन स्थान में रहना, रात्रिमें मरघट फुल्लपोपममुखं सौम्यदृष्टिमकोपनम् । में वास करना, नग्न फिरना, गुरुनिंदा | अल्पवाक् स्वेदविण्मूत्रं भोजनानभिलाषिणम् विधिरहित स्त्रीसंगम, अपवित्र अवस्था में देवद्विजातिपरमं शुचिसंस्कृतवादिनम् मीलयंतं चिराने सुरभि वरदायिनम् देवादि का पूजन, पराये सूतक में मिला | शुक्लमाल्यांवरसरिच्छैलोञ्चभवनप्रियं ॥ रहना, होम, मंत्र, वलि, और यज्ञों को । अनिद्रमप्रधृष्यं च विद्याद्देववशीकृतम् ॥ उलटी रीति से करना, तथा दिनचर्या में . अर्थ-जिसे देवगण प्रहण करते हैं उस कहे हुए आचारों से विपरीत कर्म । ये सब का मुख विकसित कमलके समान होजाता प्रहों द्वारा गृहीत होने के हेतु हैं । है, उसकी दृष्टि सौम्य और स्वभाव कोपभूतगृहण का काल I रहित होता है । कम वोलना, कम पसीने, गृहणति शुक्ल प्रतिपत्रयोदश्योः सुरा नरम् । | थोडा मल, थोडा मूत्र, भोजन में अरुचि, शुकत्रयोदशीकृष्णद्वादश्योदानवा ग्रहाः । देवता और ब्राह्मणों में परम भाक्त, पवित्र गंधर्यास्तुचतुर्दश्यां द्वादश्यां चोरगाःपुनः पंचम्यां शुक्लसप्तम्येकादश्योकादयोस्तु । | संस्कृत बाणी बोलना, बहुत देरतक दोनों धनेश्वराः ॥ १० ॥ नेत्र बंद रखना, शरीर से सुगंध निकलना शुक्लाष्टपंचमीपूर्णमासीषु ब्रह्मराक्षसाः। वर दैना, सफेद फूलमाला धारण करना, कृष्णे रक्षः पिशाचाद्या नवद्वादशपर्वसु नदी, शैल और ऊंचे मकान प्रिय लगना, दशामावास्ययोरष्टनवम्योः पितरोपरे। गुरुवृद्धादयः प्रायः कालं सध्यासु लक्षयेत् निद्रानाश और पराभव न होना । ये सब अर्थ-देवग्रह शुक्लपक्ष की प्रतिपदा और | लक्षण देवग्रहगृहीत के होते हैं । त्रयोदशी को, दानवग्रह शुक्लपक्ष की त्रयो. दैत्यग्रह के लक्षण । दशी और कृष्णपक्ष की द्वादशी को, गंधर्व जिह्मदृष्टिं दुरात्मानं गुरुदेवद्विजद्विषम् ॥ निर्भयं मानिनं शूरं क्रोधनं व्यवसायिनम्॥ चतुर्दशी और द्वादशी को, सर्पग्रह पंचमी रुद्रः स्कंदोविशाखोऽहमिंद्रऽहमितिवादनम् को, यक्षग्रह शुक्लपक्षकी सप्तमी और एका- सुरामांसरुचि विद्यात् दैत्यग्रहगृहीतकम् ॥ दशीको, ब्रह्मराक्षसग्रह शुक्लपक्षकी अष्टमी, | अर्थ-जिस मनुष्य पर दैत्यग्रह आक्रपंचमी और पूर्णिमाको, गक्षस भौर पिशा- | मण करते हैं, उसकी दृष्टि टंदी हो जाती है For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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