SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 838
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०३ www.kobatirth.org उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत । भूर्जपत्रं घृतं धूपः सर्वग्रहनिवारणः । अर्थ- सरसों, नीम के पत्ते, मूल, गिरिकर्णिका, बच, और भोजपत्र इनको कूट कर घी में मिलाकर धूनी देने से सम्पूर्ण ग्रहों की शांति होजाती है । अन्य प्रयोग | अनंताम्रास्थितगरं मरिचं मधुरो गणः ५० श्रृगालविन्ना मुस्ताच कल्कितैस्तैर्घतं पचेत् दशमूलरसक्षीरं युक्तं तद्ग्रह जित्परम् ५१ ॥ अर्थ - अनंतमूल, आम की गुठली, तगर, कालीमिरच, मधुरगणोक्त द्रव्य, प्रश्नपर्णी और मोधा इनका कल्क तथा दशमूल का रस और दूध इन सब के साथ में पकाया हुआ घी पान कराने से संपूर्ण ग्रह शांत हो जाते हैं । यह बालक के लिये अच्छा पथ्य है । अन्य घृत । रास्त्राध्वंशुमतीवृद्धपञ्चमूलवचाघनात् । क्वाथें सर्पिः पचेत्पिष्टैः सारिवाव्योषाचेत्रकैः पाठाविडंगमधुकपयस्याहिंगुदारुभिः । सग्रंथिकैः सेंद्रयवैः शिशोस्तत्सततं हितम् सर्वरोगग्रहहरं दीपनं बलवर्णदम् । अर्थ - रास्ना, बाला, शालपर्णी, बृहत्पंन मूल, बच और नागरमोथा इनका काढा करले । तथा सारिवा, त्रिकुटा, चीता, पाठा वायविडंग, मुलहटी, दुद्धी, हींग, देवदारु पीपलामूल और इन्द्रजौ इनका कल्क मिला कर पाकोक्त विधिसे घृत को पकाबै । वालक के लिये यह घृत निरंतर हितकारी है, संपूर्णरोगों का नाश करने वाला है, अग्नि संदीपन है तथा बल और वर्ण को बढाने बाला है Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७४१ ) अन्य घृत । सारिवासुरभीब्राह्मी शंखिनीकृष्ण सर्षपैः ५४ वचाश्वगन्धासुरसायुक्तैः सर्पिर्विपाचयेत् । तन्नाशेयवग्रहान्सवम्पान नाभ्यं जनेन च५५ अर्थ - सारिवा, रास्ना, ब्राह्मी, शंखनी, काली सरसों, बच, असगंध और तुलसी इनके काढ़े के साथ पकाया हुआ घी पान और अभ्यंजन द्वारा प्रयुक्त किये जानेपर संपूर्ण ग्रहों को शांत करदेता है । अन्य धूप । गो संगालोम बालाहिनिर्मोक वृषदंशविट् । निवपत्राज्यकटुका मदनं बृहतीद्वयम् ५६ ॥ कार्पासास्थिवच्छा गरोमदेवावा सर्वपम् । मयूरपत्रश्रीवासं तुषकेश सरामठम् ५७ ॥ मृद्भांडे वस्तमूत्रेण भावितं श्लक्ष्ण चूर्णितम् धूपनार्थे हितं सर्व भूतेषु विषमे ज्वरे ५८ ॥ अर्थ - गौ का सींग, रोम, पूंछके बाल, सर्पकी काचली, बिल्ली का बिष्टा, नीमके पत्ते, घी, कुटकी, मेनफल, दोनों कटेरी, बिनौला, जौ, बकरी के रोम, देवदारु, सरसों, मयूरपुच्छ, सरलकाष्ठ, वहेडा, वालछड, हींग, इन सब द्रव्यों को एक मृतिका के पात्र में रखदेवे और वकरे के मूत्रकी भाबना देकर सुखाकर महीन पीसकर धूप देवे इससे संपूर्ण ग्रहविकार और विषम ज्वर दूर हो जाते हैं । For Private And Personal Use Only भूतविद्या के द्रव्य ! घृतानि भूतविद्यायां वक्ष्यन्ते यानि तानि च युज्यात्तथा बाल होमं स्त्रपनं मंत्रतंत्रवित् ५९ अर्थ - भूतविद्या में जो जो घृत कहे गये हैं वे सब घृत, तथा वलिदान, होम, स्नानादि का प्रयोग मंत्र तंत्रका जानने बाला करे । € और
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy