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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पस्थान भाषाटीकासमेत । (१८७) पित्तकफज्वर में चूर्णादि । इक्ष्वाकुके दूधका प्रयोग। पसंगतानां शुष्काणां फलानांवेणिजन्मनाम् फलपुष्पविहीनस्य प्रवालैस्तस्य साधितम् । चूर्णस्य पयसा शुक्ति पातपित्तार्दितःपिवेत् पित्तश्लेष्मज्वरे क्षीरं पित्तोद्रिक्त प्रयोजयेत्॥ द्वे वा त्रीण्याप वाऽपोथ्य काथे तिक्तोत्तमस्य अर्थ-जिस तूवी में फल और पुष्प पैदा वा ॥ २४ ॥ न हुए हों उसके पत्तोंसे सिद्ध किया हुआ भारग्वधादिनवकादासुत्यान्यतमस्य वा।। विमृद्य पूतं तं काथ पित्तश्लष्मज्वरी पिबेत् ॥ दूध पित्तकफ ज्वर में पित्तका प्रकोप होने '- अर्थ -सम्यक् रीतिस पाकको प्राप्त हुए | पर देना चाहिये। और सूखे हुए देवदाली के फलों के दो तोले वमनमें दहीका प्रयोग । चूर्णको दूध के साथ वातपित्त से पीडित रोगी हृतमध्ये फले जीर्णे स्थितं क्षीरं यदा दधि । स्यात्तदा कफजे कासश्वासे वम्यं च को दैना चाहिये । पित कफ ज्वरवाले रोगी . पाययेत् ॥ २९ ॥ को जीमूतके दो तीन फल कूटकर नीमके अर्थ-पकी हुई तूंबी का वीचका भाग काथके संग अथवा आरम्वचादि नौ द्रव्यों में | अर्थात् गूदा निकाल कर दूध भरदे । जब से किसी एक द्रव्य के क्व थमें जीमूत के दो दूध जमकर दही होजाय तब उसे कफ से तीन फलों का आसुत वनाकर मलकर और उत्पन्न हुए खांसी और श्वास रोगोंमें वमन कपड़े में छानकर पान करावै । घरावरी, कराने के लिये देवै । वेणी, देवदाली और जीभूत ये चागें शब्द अन्य प्रयोग। पर्यायवाची हैं। मस्तुना वा फलान्मध्यं पांडुकुष्ठविषादितः। पिचवर में पानादि । तेन तक्रं विपक्कं वा पिवेत्समधुसैंधवम् जीमूतचूर्ण कलंक वा पिवेच्छीतेन धारिणा। अर्थ-तूंवीके गूदेको दहीके तोडके साथ ज्वरे पैत्तं कवोष्णेन कफवातात्कफादपि ॥ | अथवा इसको तक्रके साथ पकाकर शहत ___ अर्थ--पितज्वर में देवदाली के कल्क वा । और सेंधानमक मिलाकर सेवन करने से पां. चूर्ण को ठंडे जल के साथ पीवै, तथा वात- डुरोग कुष्ठ और विषदोष दूर हो जाते हैं। कफ ज्वरमें वा कफज्जर में गुनगुने जलके अन्य प्रयोग। -साथ पान करीव । भावयित्वाऽजदुग्धेन बीजं तेनैव था पिबेत् इक्ष्वाकु का प्रयोग। | विषगुल्मोदरग्रंथिगंडेषु श्लीपदेषु च कासश्वासविषच्छर्दिवराते कफाते। | अर्थ-तूंबीके बीजोंमें बकरी के दूधकी इक्ष्वाकुर्वमने शस्तः प्रताम्यति च मानवे ॥ भावना देकर उसको बकरी के दूधके साथ : अर्थ--खांसी, श्वास, विष, वमन और | ही पान करे तो विषदोष, गुल्म, उदररोग, ज्वरसे पीडित रोगी को, तथा कफसे कर्शित | ग्रंथि, गंड और श्लीपद शांत हाजाते हैं । और प्रतमकवाले रोगी को वमन कराने के मंथका प्रयोग। लिये कडवी तूंजी का प्रयोग हितकारी है। सक्तमिळ पिबेन्मथं तुंबीस्वरस भावितैः । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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