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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ०२१ चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत । गिरी डालकर औटाये हुए दूध में घृतमंड अन्य प्रयोग । का पाक करके इसमें से चार वा आठ तोले समूलशाखस्य सहाथरस्यतक नस्य देना चाहिये। तुलां समेतां दशमूलतश्च । पलानि पंचाशदीरुतश्च. अन्य प्रयोग। पादावशेष विपचेदहेऽपाम् ॥ ६६ ॥ तद्वात्तिद्धा बसा नक्रमत्स्यकूर्मचुळूकजा। तत्र सेव्यनस्त्रकुष्टहिमैलाबिशेषेण प्रयोक्तव्य केवले मातारश्वानि ॥ स्पृकूप्रियंगुनालकांवुशिलाजैः। अर्थ-ऊपर लिखे हुए घृतमंड के अनु- लोहितानलदलोहसुराहै:सार तक्र, मछली, कच्छप, और सूंस की कोपनामिशितुरुष्कनैतश्च ॥ ६७ तुल्य क्षीर पालिकैस्तैलपात्रंचर्वी को पकाकर सेवन करने से वातरोग | सिद्धं कृच्छ्रान्शीलित हति वातान् । में विषेश लाभ होता है। कंपाक्षेपस्तंभशोषादियुक्तान्। अन्य तैल। गुल्मोन्मादी पीनसं योनिरोगान् ।। जीर्ण पिण्याकं पत्रमूल पृथक् अर्थ-कुरंट की जड और शाखा एक काथ्यं क्वाथाम्यामेकतस्तैलमाभ्याम् . . तुला, दशमूल एक तुला, सितावर ५० पल क्षीरादष्टांश पाचयेत्तेन पानाद् जल एक द्रोण इनका काढा करे चौथाई वाता नश्येयुः श्लेष्मयुक्ता विशेषात् । अर्थ-पुरानी खल और पंचमूल इनका शेष रहने पर उतार कर छानले इसमें खस, अलग २ काढा करके इन काढोंसे अठगुना नखी,कुडा, चंदन, इलायची, स्पृक्वा,प्रियंगु, दूध डालकर इसमें तेल पकावे, इस तेल के नलिका, नेत्रवाला,शिलाजीत, मजीठ, बालपान करने से विशेष करके कफसंयुक्त बात छड, अगर, देवदारु, कोपना, सोंफ, शि लारस, तगर प्रत्येक एक पल, इनका कल्क रोग दूर होजाते हैं। अन्य तेल । डाल, तथा एक पात्र तेल और इतना ही प्रसारिणी तुलाकाथे तैलप्रस्थं पयः समम् ।। दूध मिलाकर पाककी रीति से तेल को द्विमेदामिशिंमजिष्ठाकुष्टरानाफुचंदनैः ॥ पकावे । इसके सेवन करनेसे अत्यन्त कष्टः जीवकर्षभकाकोलीयुगुलामरदाराभिः । प्रद वातरोग, कंपन, आक्षेप, स्तंभ, शोष कल्कितैर्विपचेत्सर्वमारुतामयनाशनम् ६५॥ गुल्म, उन्माद पीनस और योनिरोग जाते अर्थ-प्रसारिणी के एक तुला काथ में | रहते हैं। एक प्रस्थ तेल और एक प्रस्थ दूध मिलावे वातकुंडलिकादिनाशक तैल।. तथा मेदा, महामेदा, सोंफ, मजीठ, कूठ, सहाचरतुलायास्तु रसे तैलाढकं पचेत् । रास्ना रक्तचंदन, जीवक, ऋषभक, काकोली, | मूलकलकाद्दशपलं पयो दत्त्वा चतुर्गुणम् ॥ क्षीरकाकोली, और देवदारु इनका कल्क अथवा नतषग्रंथास्थिराष्टसुराहयान् । सैलानलदशैलेयशताहारक्तचंदनाम् ॥७॥ डालकर विधिपूर्वक पाक करे, इस तेल से सिद्धऽस्मिन् शर्कराचूर्णादष्टादशपलंसब प्रकार के वातज रोग नष्ट होजाते हैं। क्षिपेत्। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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