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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत । (५७३) पिच्छास्त्रतौ गुदभ्रंशे प्रवाहणरुजासु च ॥ | जलमें भिगो देवै, फिर इस जलको छानकर पिच्छाबस्तिः प्रयोक्तव्यः क्षतक्षीणबलावहः इसमें घृत पकावै । घीसे आधी शर्करा और अर्थ -शीशम और कचनार के पत्तों को चौथाई शहत मिलाकर सेवन करे तो पूर्ववत् कूटकर इनके साथ जौका काथ बनावै । इस गुणकारी होताहै और रक्तकी प्रवृत्ति चाहै काथमें घी और दूध मिलाकर इससे पिच्छा ऊपर के मार्गसे हो, चाहै नीचे के मार्ग से वस्ति देवे तो पिच्छिल स्राव, गुदभ्रंश और हो शीघ्र दूर होजाती है। प्रवाहिका का शूल दूर होजाते हैं । यह बस्ति | कफातिसार में कर्तव्य । क्षतक्षीण मनुष्यों को बल देनेवाली है। श्लेष्मातिसारे वातोक्तं विशेषादामपाचनम् - अनुवासनवस्ति । कर्तव्यमनुबंधस्य पिबेत्पक्त्वाऽग्निदीपनम् प्रपौडरीकसिद्धेन सर्पिषा चाऽनुवासनम् ॥ बिल्वकर्कटिकामुस्तप्राणदाविश्वभेषजम् । वचाविडंगभूतीकधानकामरदारु वा ॥ ___ अर्थ प्रॉडरीक के रसमें पकेहुए घृत अथवा पिप्पलीमूल पिप्पलीद्वयाचित्रकाः । की अनुवासन वस्ति हितहै। अर्थ कमातिसार में उन औषों का रक्तातिसार में अवलेह। विशेष रूपसे प्रयोग करना चाहिये जो बारक्तं विटसहितंपूर्वपश्चाद्वा योऽतिसार्यते। तातिसार में आमके पचाने के निमित्त कही शतावरीघृतं तस्य लेहार्थमुपकल्पयेत् ॥ गई हैं। इससे भी जो व्याधि की शांति न अर्थ-जिस रोगी के मलके साथ अथवा हो तो बेलगिरी, मोथा, हरड और सौंठ, मलसे पहिले वा पीछे रक्त निकलता हो उस के लिय शतावरी घृत दैना चाहिये । अथवा बच, वायविडंग, अजवायन, धनिया अन्य अवलेह । और देवदारू अथवा पीपलामूल, दोनों पीशर्करा(शकं लीढं नवनीतं नवोद्धृतम् ।। पल और चीता इनसे सिद्ध किया हुआ क्वाथ पान कराना चाहिये । क्षौद्रपादं जयेच्छीघ्रं तं बिकारं हिताशिनः अन्य प्रयोग । __अर्थ-ताजा नवनीत में आधा भाग पाठाग्निवत्सकग्रंथितिक्ताशुंठीबचाभयाः ॥ चीनी और चौथाई भाग शहत मिलाकर | क्वाथता यदि बा पिष्टाःसेवन करनेसे ऊपर कहेहुए रोग शीघ्र जाते श्लेष्मातीसारभेषजम्। रहते हैं, परन्तु पथ्यसे रहना उचितहै। । अर्थ-पाठा, चीता, कुटा की छाल, ऊर्ध्वरक्तमें उपाय। पीपलामूल, कुटकी सोंठ, बच और हरड न्यग्रोधोदुबराश्वत्थशंगानापोथ्य वासयेत् । इनका काथ वा चूर्ण सेवन करनेसे कफा. अहोरात्रं जले तप्ते घृतं तेनांभसा पचेत् ॥ | तिसार दर होजाताहै। . तदर्धशर्करायुक्तं लेहयेत्क्षौद्रपादिकम् । कफातिसारपर अन्य औषध । अधो वा यदि वाप्यूर्व यस्य रक्तं प्रवर्तते ॥ . . अर्थ-बड, गूलर और पीपल इनका | पिबेच्छलेष्मातिसारार्तश्चूर्णिता | सौबर्चलवचाव्योपहिगुप्रतिविषाभयाः ॥ कोंपलों को कूटकर एक दिन रात गरम "कोणबारिणा। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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