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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ० ३ www. kobatirth.org चिकित्सितस्थान भाषाटीकासभेव । सर्पिषः षोडशपलं चत्वारिंशत्पलानि च । मत्स्यडिकायाः शुद्धायाः पुनश्च तदधि श्रयेत् ॥ ६४ ॥ दवलेपिनि शीतेच पृथगू द्विकुडवं क्षिपेत् । पिप्पलीनां तवक्षीर्या माक्षिकस्यानवस्य च ॥ लेहोऽयं गुल्महृद्रोगदुर्नामश्वासकास जित् । अर्थ - - एक तुला कटेरी को कुचलकर इसको चार द्रोण पानी में पकावै जब चौथाई शेष रह जाय तब कपडे में छानकर रखले, उसमें त्रिकुटा, रास्ना, गिलोय, चीता, काकडासिंगी, भाडंगी, नागरमोथा, पीपलामूल और धमासा इनका आधा आधा पललेकर चूर्ण बनाकर मिलावै । फिर इसमें १६ पल घी, और ४० पल शुद्ध रावमिलाकर फिर पकावै, जब कलछी से लगने लगे तब उतारकर ठंडा करले फिर इसमें दो कुडव पीपल, दो कुडव वंशलोचन, तथा दो कुडव पुराना मधु मिलाले बे यह अवलेह गुल्मरोग, हृदयरोग, अर्श, श्वास खांसी को दूर करदेता है । कफकासादि में धूमपान । शमनं च पिवेधूमं शोधनं बहुले कफे ॥ अर्थ - कफकी खांसी में संशमन धूमपान और गाढे कफकी खांसी में शोधन धूमपान करना चाहिये । धूमपान की विधि | मनःशिलालमधुकमांसीमुस्तेंगुदित्वचः । धूमं कासनविधिना पीत्वा क्षीरं पिवेदनु ॥ निष्टतांते गुडयुतं कोणं धूमा निहंति सः । बातश्लेष्मोत्तरान् कासानाचिरेण चिरंतनान् अर्थ - मनसिल, हरिताल, मुलहटी, जटामासी, मोथा, और गोंदी की छाल इनका धूमपान सूत्रस्थानोक्त कासनाशक ६२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४८९ ) विधि के अनुसार पीना चाहिये, पीकर ऊपर से दूध पीले और कफ थूकने के पीछे गुड मिला हुआ थोडे गरम दूध पीवे यह धूम बहुत दिनकी वाताधिक्य खांसी को बहुत शीघ्र दूर कर देता है । तमक की चिकित्सा | तमकः कफकासे तु स्याच्चेत्पित्तानुबंधजः । पित्तकासक्रियां तत्र यथावस्थं प्रयोजयेत् ॥ अर्थ - कफी खांसी में यदि पितानुबंधी तमकश्वास हो तो अवस्था के अनुसार पिराजकास की क्रिया करना चाहिये । वातकफकी खांसी में कर्तव्य | कफानुबंधे पवने कुर्यात्कफहरां क्रियाम् ।. पित्तानुवयोर्वातकफयोः पित्तनाशनीम् ॥ अर्थ - कफानुबंधी वातकी खांसी में कफनाशिनी क्रिया करनी चाहिये । तथा पित्तानुबंधी कफवातको खांसीमें पित्तनाशिनी क्रिया करनी चाहिये | अन्य उपाय | वातश्लेष्मात्मके शुष्कोस्निग्धं चात्रै विरूक्षणम् कासे कर्म सपित्ते तु कफजे तिक्तसंयुतम् ॥ अर्थ- वातकफात्मक सूखी खांसी में स्निग्धक्रिया तथा गीली खांसी में रूक्ष क्रिया करनी चाहिये परंतु पित्तयुक्त कफकी खांसी में तिक्तत्रयुक्त औषधका प्रयोग करना चाहियें रक्षतचिकित्सा | उरस्यंतःक्षते सद्यो लाक्षां क्षौद्रयुतां पिवेत् । क्षीरेण शालीन् जीर्णेऽद्यात्क्षीरेणैव सशर्करान अर्थ - खांसी के रोग में यदि छाती के भीतर घाव होगया हो तो शहत मिली हुई लाखको दूध के संग पान करे, और औषध For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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