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अ. ३
चिकित्सितस्थान भाषाटीकासमेत ।
(४४९)
इनको अलग अलग मधु और घृतके साथ भ्यंतर प्रयोग कहेगयेहै तथा क्षत और क्षणि चाटै ।
में जो जो प्रयोग कहेगयेहैं वे सब रक्तपित्त गुदागामी रक्तमें वस्ति । में हितकारी होतेहैं । "गुदागमे विशेषेण शोणिते बस्तिरिष्यते ॥ इतिश्रीअष्टांगहृदयसंहितायां भाषाटीकायां
अर्थ-गुदाद्वारा निकलनेवाले रक्तमें वि- चिकित्सित्स्थाने रक्तपित्तचिकित्सितनाम शेष करके वस्तिका प्रयोग किया जाता है। द्वितीयोऽध्यायः । - नासागामी रक्तमें नस्य । घ्रागगे रुधिरे शुद्ध नावनं चानुषेचयेत् । कषाययोगान् पूर्वोक्तान
तृतीयोऽध्यायः । क्षीरेक्ष्वादिरसाप्लुतान् ॥ ४६ ॥ क्षीरोहीन्सलितांस्तोयं केवलं वाजलंहितम रसो दाडिमपुष्पाणामम्रोत्थः
| अथाऽतः कासचिकित्सितं व्याख्यास्यामः। ___ शाड्वलस्य वा ॥ ४७॥ अर्थ-अब हम यहां से कासचिकित्सित अर्थ-नासिका द्वारा शुद्ध रक्त निका. | नामक अध्याय की व्याख्या करेंगे । लने पर नस्य देना चाहिये, इसमें दूध कास में स्नहादि उपचार । और इक्षुरस में वासकादि पूर्वोक्त क्वाथ
" केवलानिलजं कासं स्नेहैरादावुपाचरेत् ॥
| वातघ्नासिद्धःस्निग्धैश्चपेयायूषरसादिभिः । मिलाकर देना चाहिये | अथवा क्षीरा मांस.
लेह मैस्तथाभ्यंगैः स्वेदसेकावगाहनैः। रस, घृत आदि मिश्री डालकर, अथवा
बस्तिभिर्वद्धविड्वातं सपित्तं त्वौर्श्वभक्तिकैः चीनी मिला हुआ जल, अथवा केवल जल, घृतैः क्षीरेश्च सकर्फ जयेत्स्नेहविरेचनैः। अथवा अनार के फूलों का रस, अथवा ____ अर्थ-केवल बात से उत्पन्न हुई खांसी आम के फूलों का रस, अथवा हरी दूधका में प्रथमही वातनाशक औषधियों से सिद्ध रस, इनमें से चाहै जिसकी नस्य देवै । किया हुआ स्नेह देना चाहिये,तथा स्निग्ध
अन्य औषध । पेया,यूष,मांसरस, अवलेह,धूमपान, अभ्यंग, कल्पयेच्छीतवर्ग च प्रदेहाभ्यंजनादिषु ।
स्वेद, परिषेक, अवगाहन, इन सब उपायों ___ अर्थ--वैद्यको उचितहै कि रक्तपित्त
से कासरोग की चिकित्सा करनी चाहिये, रोगमें प्रलेप और अभ्यंजनादि शीतवीर्यवाली
खांसी के साथ मलकी वद्धता हो तो वस्ति औषध अपनी वुद्धिसे कल्पना करलेवे ।
का प्रयोग करे । पित्तयुक्त वातकी खांसी साधारण उपाय ।
में पेयापान के अनंतर वातनाशक औषधों यच्च पित्तज्बरे प्रोक्तं बहिरंतश्च भेषजम् । रक्तपित्ते हितम् तच्च क्षतक्षीणे हितम्
से सिद्ध किया हुआ घृत और दुग्ध पान . च यत् ॥४८॥ करावे । कफयुक्त वातकी खांसी में स्नेह अर्थ-पितजवर में जो वाह्य और आ. विरेचन देव ।
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