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(४४६)
अष्टांगहृदय ।
म १६
हाथोंसे मर्दन करनेपर सुखकी प्राप्ति होतीहै। वेदना होने लगती है, तथा विलोम वायु शुक्राकृत वायु ।
हृदय को ब्याकुल करके पीडित करताहै । शुक्रावृतेऽतिवेगोवा न वा निष्फलताऽपिवा पित्तावृत प्राण वायु । - अर्थ-शुक्राबृत वायुम वायका अतिवेग | भ्रमोम रजा दाहः पित्तन प्राण आवृते ४२ अथवा सर्वथा बेगका अभाव और निष्फ. | विदग्धेऽन्ने च वमनम्लता होती है।
अर्थ-प्राण वायु के पित्त से अतृत अन्नावृत वायु ।
होने पर भम, मूर्छा, वेदना, दाह, और भुक्ते कुक्षौ रुजाजीणे शाम्यत्यन्नावृतेऽनिले | अपक्व अन्नकी वमन होजाती है । ____ अर्थ-वायुके अन्नसे आबृत होनेपर पित्तावृत उदान वायु । भोजन करनेसे कुक्षिमें शूल होता है, और
उदानेऽपि भ्रमादयः। अन्नके पचने पर वेदनाकी शांति होती है। | दाहोऽतर्जा श श्चमूत्रावृत वायु ।
_____ अर्थ -उदानवायु के पित्तसे आवृत होने मूत्राप्रवृत्तिराध्मान बस्तौ मूत्रावृते भवेत् ।। पर पूर्वोक्त भम मूर्छा आदि, तथा अंतर ___ अर्थ-मूत्र से वायु के आवृत होजाने | दाह और बल का नाश होता है । पर मूत्र का निकलना बंद होजाता है और पित्तावृत यान वायु । वस्ति स्थान में वेदना होने लगती है । । दाहो व्याने च सर्वगः ॥ ४३ ॥ परीषावत वाय।
क्लमोऽगचेष्टासंगश्च ससंतापः सवेदनः ॥ विडावृते विबंधोऽधः स्वस्थानेपरिकृतति। अर्थ-पित्ताबृत व्यान वाय में अंतर्दाह अजत्याशु जरां स्नेहो भुक्ते चानह्यते नरः॥ वहिर्दाह, क्वांति, शारीरिक क्रियाओं का शकृत्पीडितमन्नेन दुःखं शुष्कंचिरोत्सृजेत् ।
| नाश, संताप और वे चा होते हैं। .. अथे-वायु के पुरीष से आवृत होनपर गुह्यदेश में विवंधता होने के कारण कतरने
पित्तावृतसमानवायु। कीसी वेदना होतीहै, स्निग्ध पदार्थ शीघ्र पच
समान ऊष्मोपहतिरतिस्वेदोऽरतिः सतत् ॥ जाताहै और भोजन करने पर पेटमें अफरा
___ अर्थ-पित्तावृत समान वायुमें ऊष्माका होजाता है, इस तरह अन्न द्वारा मल
नाश, पसीनोंकी अधिकता, अरति और तृषा पीडित होकर सूखा हुआ बडी कठिनता से
उत्पन्न होते हैं। और बहुत देर में निकलता है ।
पित्तावृतअपानवायु । सर्वधात्वावृत वायु।
दाहश्च स्यादपाने तु मले हारिद्रवर्णता। सर्वधात्वावृते वायो श्रोणावंक्षणपृष्ठरुक् ॥
रुजोऽतिवृद्धिस्तापश्च योनिमेहनपायुषु ॥ विलोमो मारुतोस्वस्थं हृदयं पीडयतेऽति च ____ अर्थ-वायुके पित्तावृत होनेपर दाह, म- अर्थ-संपूर्ण धातुओं द्वारा वायु के आ. | ल में हरा रंग, तथा योनि, लिंग, और गदा वृत होने पर श्रोणी, वंक्षण और पीठ में | में अत्यन्त शूल और ताप होते हैं ।
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