________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[३६४)
अष्टांगहृदय ।
अ० ४.
श्वास का पूर्वरूप। । पीडित करके खांसी, घुरघुराहट, मोह, अ. प्राग्रपं तस्य हत्पावशूलं प्राणविलोमता ४ रुचि, पीनस, तुषा तथा अति तीव्र वेगवाले आनाहः शखभेदश्च
प्राणोपतापी श्वास को उत्पन्न करदेती है । अर्थ-श्वासरोग के होने से पहिले हृदय
श्वास के वेगसे रोगी बड़ा क्लेश उठाता है और पसली में शूल, प्राणवायु का विपरीत
और जब थोडासा कफ निकलजाता है तव मार्ग में गमन, आनाह और कनपटियों
थोडीदेर के लिये वह सुखका अनुभव करमें फटनेकी सी वेदना होती है । ये श्वास
ताहै । शयन करने पर श्वास बढजाता है के पूर्वरूप हैं।
और वैठेहोने पर कुछ सुख प्राप्त होताहै । क्षुद्रश्वास के लक्षण ।
आंख ऊपरको चढजाती हैं, ललाटपर पसीतत्रायासातिभोजनैः। प्रेरितःप्रेरयेत् क्षुद्रं स्वयं संशमनं मरुत् ५
ना आताहै, अत्यन्त वेदना होती है, मुख __ अर्थ-व्यायामादि परिश्रम और अति भो
सुख जाताहै, वार वार श्वासआता है, रो. जन से वायु उन्मार्गगामी होकर क्षुद्रश्वास
गी उष्ण पदार्थ की इच्छा करता है, कांपउत्पन्न करता है । यह श्वास विना चिकि
ताहै, यह तमक श्वास वर्षाकाल, शीतल त्सा किये ही कुछ काल पीछे अपने आप जल, शीतकाल और पूर्वदिशा की पवन शांत होजाता है ।
तथा कफकारी द्रव्यों के सेवन से बढ़ता है .. तमक श्वास के लक्षण । यह याप्य होता है, किन्तु यदि बहुत दिन प्रतिलोमंसिरा गच्छन्नुदीर्य पवनः कफम्। का नहो अथवा रोगी बलवान् हो तो सापरिगृह्य शिरोग्रीवमुरः पार्थे च पीडयन् ॥ ।
ध्यभी होजाताहै । कासं घुघुरकं मोहमाचं पानसं तृषम्। करोति तीववेगं च श्वास प्राणोपतापिनम् ।
प्रतमक श्वास के लक्षण । प्रताम्येत्तस्य वेगेन निष्ठयूतांतेक्षणं सुखी ॥ | ज्वरमूर्जायुतः शीतैः शाम्येत्प्रतमकस्तु सः। कृच्छ्रच्छयानः श्वसिति निषण्ण:- __ अर्थ-तमकश्वास में ज्वर और मूछी हो
स्वास्थयमृच्छति ॥ ८॥ और शीतवीर्य औषध और शीतल आहार उच्छ्रिताक्षो ललाटेन स्विद्यता भृशमर्चिमान् विशुष्कास्यो मुहुः श्वासी कांक्षत्युष्णं
विहार से शांतहोजाय तथा तमक श्वासकी
सवेपथुः ॥९॥ तरह न वढे तो यह प्रतमक कहलाता है, मेघांबुशीतप्राग्वातैः श्लेष्मलैश्च विवर्धते। यह तमक श्वासका एक भेद है। इसको स याप्यस्तमकः साध्यो नवो वा बलिनो.
छटा श्वास न समझ लेना चाहिये ।
भवेत् ॥ १०॥ __ अर्थ-पवन जब विपरीत रीति से सिरा
छिन्न श्वास के लक्षण । के स्रोतों में प्रविष्ट होती है, तव यह कफ
छिन्नछ्वसिति विच्छिन्नमर्मच्छेदरुजार्दितः
सस्वेदमूर्छः सानाहो बस्तिदाहनिरोधवान् को उ.परको लेजाती है और मस्तक तथा
अधोदग्विप्लुताक्षश्च मुह्यन् रक्तैकलोचनः॥ प्रीवाको ग्रहण कर हृदय और पसलियों को । शुष्कास्यःप्रलपन दीनोनष्टच्छायो विचेतनः
For Private And Personal Use Only