SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 434
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शारीरस्थान भाषादीकासमेत । ३३५ उक्त स्वप्नों का फलाफलत्व। दुःस्वप्न के पीछे सुस्वप्न । तेवाद्या निष्फलाः पंच यथास्वप्रकृतिदिवाः अकल्यागमपि स्वप्नं दृष्ट्वा तत्रैव यःपुनः। विस्मृतो दर्घिहस्वोऽति | पश्येन्सौम्य शुभं तस्य शुभमेव फलं भवेत् ॥ पूर्वरात्रे चिरात्फलम्। अथे-जो मनुष्य अशुभ स्वप्न देखकर हटः करोति तुच्छं च उसी स्वप्न में दूसरा शुभ स्वप्न देखता है गोसर्गे तदहर्महत् । ६३। तो शभही फल होता है । निद्रया चानुपहतःप्रतीपैर्वचनस्तथा। सौम्यस्वप्नों का वर्णन । ___ अर्थ-इन सब प्रकार के स्वप्नों में से देवान् द्विजान् गोवृषभान जीवतः सुहृदीपहिले पांच प्रकार के स्वप्न यथानुरूप . नृपान् । शुभाशुभफल नहीं देते हैं । वातादि प्रकृति- साधून यशस्विनो वन्हिांमद्धम् स्वच्छान्यों के अनुरूप स्वप्न दिखाई देते हैं वे भी जलाशयान् ॥ ६६॥ कन्यां कुमारकान् गौरान शुक्लवस्त्रान्सुतेजसः निष्फल होते है अर्थात् ऐसे स्वप्न शुभाशुभ नराशनं दीप्ततनुं समंताधिरोक्षितः ६७ ॥ फल नहीं देते हैं, जैसे वात प्रकृतिवाले को यः पश्येल्लभते योवा छत्रादर्शविषामिषम्। वातप्रकृति के अनुरूप स्वप्न द्वन्द्वजप्रकृति शुक्लाःसुमनसो वस्त्रममेध्यालेपनं फलम् ॥ को द्वन्द्वजप्रकृति के अनुरूप स्वप्न निष्फल शैलप्रासाइसफलवृक्षसिंहनरद्विपान् । होते हैं । इसी तरह दिनका स्वप्न, भूला आरोहेद्गोऽश्वयानं च तरेन हृदोदर्धान् ॥ | पूर्वोत्तरेग गमनमागम्यागमनं मृतम् । हुआ स्वप्न, बहुत लंबा स्वप्न, बहुत छोटा संबाधानिःसृतिर्देवैःपितृभिश्वाभिनंदनम् ॥ स्वप्न भी निष्फल होते हैं । जो स्वप्न रोदनं प्रतितोत्थानं द्विषतां चावर्मदनम् । पहिली रात्रि में देखा जाता है वह बहुत | यस्य स्यादायुरारोग्यं वित्तं बहुच सोऽश्नुते काल में तुच्छफल देता है । जो स्नप्न गो ___ अर्थ-जो मनुष्य स्वप्न में देवता, द्विज सर्ग कालमें अर्थात् प्रभात के समय देखा गौ, बैल, जीते हुए सुहृद, राजा, साधु, जाता है वह उसीदिन बडा फल देता है । यश्वसी, प्रज्वलित अग्नि, स्वच्छजलाशय, अथवा पिछली रात्रि में जो शुभ स्वप्न देखा | कन्या, गौरवर्ण शुक्लवस्त्र धारी तेजस्वी जाता है उसके पीछे निद्रा न आवे बालक, नराशन ( भोजन करता मनुष्य ) अथवा किसी प्रतिकूल बचनों से उपहत दीप्ततनु, चारों ओर से रुधिर से लिहसा हुआ, देखता है । तथा जो छत्र, दर्पण, न हो तो महत्फल का सूचक है,इससे अन्यथा विष ( वत्सनाभादि ) मांस, सफेद फूल, होने पर अल्प फलदायक होता है । सफेदबस्त्र, अमेध्य आलेपन, और फलअशुभ स्वप्न में दानादि ॥ पाता है । जो मनुष्य पर्वत, प्रासाद, फल याति पायोऽल्पफलतां दानाहोमजपादिभिः । वान् वृक्ष, सिंह,नरहाथी, बैल, घोडा और ___अर्थ-अशुभ स्वप्न दान,होम और ज- यान पर चढता है, जो नदी, तालाब और पादि से अल्पफलदायक होता है। । समुद्र पर तैरकर निकल जाता है । जो For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy