SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 431
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अष्टांगहृदय । सवत्सा स्त्री, जीवजीवक हिरन, सारसआदि । अर्थ-जो मनुष्य स्वप्नमें प्रेतों के साथ प्रियभाषी पक्षी, कंकण, सफेद सरसों,इत्रा- | मद्यपान करता है और कुत्तों द्वारा घसीटा आदि सुगंधित द्रव्य, सफेद मधुरादि रस, जाता है, उसकी वररूप से शीघ्र मृत्यु शांत स्वभाव बैलफा शब्द, क्रोधरहित गौ होती है। का शब्द, प्रशस्त ( शृगाल, उल्लू और रक्तपित से मृत्यु । चांडालादि को छोडकर ] मृग, पक्षी, मनुष्य | रक्तमाल्यवपुर्वस्त्रो यो हसन् ह्रियते स्त्रिया । और मनोहारी जीवोंके शब्द, छत्र, ध्वजा, सोऽनपित्तेन ___ अर्थ-जो मनुष्य स्वप्नमें लालफूलों की और पताका का ऊपरके स्थानमें लगाना, माला और लालवस्त्र पहनकर अपना शरीर जय जय शब्द, भेरी मृदंग और शंख इनकी लाल देखे और हंसता हुआ द्विारा घसीटा ध्वनि, आरोग्यार्थ प्रशस्त शब्द, वेदध्वनि, | जावै वह रक्तपित्त रोग से मरता है। अनुकूल और सुखप्रद बायु, ये सब शुभ यक्ष्मा के हेतु । लक्षण हैं । जब वैद्य रोगी की चिकित्साके महिषश्ववराहोष्ट्र गर्दभैः ॥४१॥ लिये अपने घरसे चले वा रोगीके घर प्र. याप्रयाति दिश याम्यांमरणं तस्य यक्ष्मणा वेश करे तब ये सब शुभ शकुन दिखाई दें अर्थ-जो मनुष्य स्वप्न में भंसा, कुत्ता, तौ जानलेना चाहिये कि रोगीको आराम शूकर, ऊंट वा गधे पर चढकर दक्षिण होजायगा। दिशा को गमन करता है वह राजयक्ष्मा स्वप्नकथनम् । से मरता है। इत्युक्तं दूतशकुनं स्वप्नानूचं प्रचक्षते ॥ कंटकादि को अशुभत्व । अर्थ-दूतद्वारा प्राणी के शुभाशुभ की लता कंटकिनी वंशस्तालो वा हृदि जायते४२ सुचना करनेवाले शकुनों का वर्णन कर- | यस्य तस्याशु गुल्मेनदिया गया है, अब स्वप्नद्वारा शुभाशुभ व अर्थ-जो स्वप्न में ऐसा देखे कि उस र्णन करते हैं । * के हृदय में कांटेदार लता, वांस वा ताड स्वप्न में मद्यपान से अशुभत्व । का वृक्ष उगे तो वह गुल्म रोग से मरस्वप्ने मद्यं सह प्रेतैर्य पियन् कृष्यते शुना। जाता है। समयो मृत्युना शीघ्र ज्वररुपेण नीयते ४० नग्नता से अशुभत्व । x अशंगसंग्रह में स्वप्नके लक्षण इस यस्य वन्हिमनचिंषम् । तरह लिखे हैं “ सर्वेन्द्रियव्युपरतो मनोनु- अहवतो घृतासक्तस्य ननस्योरसि जायते ॥ परतं यदा । विषयेभ्यस्तदा स्वप्नं नानारू | पद्मं स नश्यत्कुष्ठेनपं प्रपश्यतीति । निद्राके लक्षण इस प्रकार अर्थ-जो मनुष्य स्वप्न में नंगा होकर लिखे हैं कि “ श्लेष्मावृतेषुस्रोतःसु श्रमादु | और शरीरमें घृत चुपड कर शिखारहित परतेषुच । इंद्रियेषु स्वकर्मभ्यो निद्रा वि | शति देहिनम् ॥ अग्नि में हवन करे और उसे ऐसा मालूम For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy