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________________ www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra शारीरस्थान भाषांटीकासमेत । (३३१) - समय आया हुआ दूत अशुभ है । इसके | श्लेषा, पूर्वाफाल्गुन, पूर्वाभाद्रपद, आर्द्रा, विपरीत शुभ होता है । वमन प्रमेह और मघा, मूल इन नक्षत्रों में दूत का आना अतिसारादि रोगों में सेतुभंग अशुभहै और अशुभ है । इन्ही रोगों में सेतुबंध शुभ है। दूतकी वातोंके समय अशुभ निमित्त । रोगी के दूतकी चेष्टा ॥ यस्मिश्व दूते ब्रवति वाक्यमातुरसंश्रयम् । स्पृशंतोनाभिनासास्यकेशरोमनखद्विजान्॥ | पश्येनिमित्तमशुभं तं च नानुब्रजोद्भिषक। गुह्यपृष्ठस्तनग्रीवाजठरामाभिकांगुलीः।। तद्यथा विकलः प्रेतःप्रेतालंकार एव वा। कार्पासबुसासास्थिकपालमुशलोपलम् ॥ | छिन्नं दग्धं विनष्टं वा तदादीनि वचांति का मार्जनीशर्षचैलांतभस्मांगारदशातुषान् । रसो वा कटुकस्तीबागंधोवा कोणपो महान् रज्जूपानत्तुलापाशमन्यद्वा भमविच्युतम् ॥ स्पर्शी वा विपुलः करो यद्वान्यदपि तादृशम तत्पूर्वदर्शने दूताव्याहरंति मारिष्यताम् ।। तत्सर्वमभितोवाक्यं वाक्यकालेऽथवा पुनः। - अर्थ-वैद्य से प्रथम दर्शन काल में अथात् | दूतमभ्यागतं दृष्ट्वा नातुरं तमुपाचरेत् । जब दत प्रथम ही वैद्य से मिले और रोगी अर्थ-जिस समय दूत आकर रोगी के का वृत्तान्त कहता हुआ नाभि, नासिका, संबंध की यातें वैद्य से करने लगे उस स. मुख केश,रोम, नख, दांत, गुह्यदेश, पीठ, | मय यदि कोई निम्नलिखित अशुभ निस्तन, ग्रीवा, जठर, अनामिका, उंगली, मित्त दिखाई दें तो वैद्यको उचित है कि कपास, मुस, सीसा, अस्थि, कपाल,मूसल | दूत के साथ रोगी के पास ग जाय । वे पत्थर, मार्जनी ( झाडू ), सूप, वस्त्रका | अशुभ चिन्ह ये हैं, यथा-विकल (काणा, किनारा, भस्म, अंगार, वस्त्रकी वत्ती, तुप, । ठूला आदि अंगहीन शब्द ), प्रेत ( मरने रस्सी, जूता, तराजू, पक्षियों के पकडने | का शब्द ], मुर्दे के अलंकारों की वार्ता । का जाल, अथवा और कोई टूटी हुई वा | रस्सी आदि का टूटना, जलना, पात्रादि फूटी हुई वस्तु का स्पर्श करै तो जान लेना फूटना, आदि शब्दों को कानों से सुने । चाहिये कि जिस रोगी का यह दूत है वह ] मिरच आदि कडवे तीखे द्रव्यों को आंखों रोगी मरनेवाला है। से देखे । अत्यन्त दुर्गंधित पदार्थ नाक से दूत के आनेका अशुभकाल। सूंघने में आवै । विस्तीर्ण और क्रूर स्पर्श तथाऽर्धरात्रे मध्यान्हे संध्ययोः पूर्ववासरे ॥ छने में आवे वा एमी ही कोई अन्य वातें षष्ठीचतुर्थानवमीराहुकेतूदयादिषु। भरणीकृतिकाऽऽश्लेषापूर्वाऽऽद्रीपैयनेते | हो रही हो तो ये सव अशुभ सूचक हैं, अर्थ-आधी रात के समय, दपहर के ऐसे दूतवाले रोगी की चिकित्सा न करे । समय, दिन और रात्रिकी संधियों के समय ___ अन्य अशुभ निमित्त । पहिले दिन, षष्ठी, चतुर्थी, नवमी, राहु, | AM | हाहादितमुत्कष्टं रुदित स्खलनं क्षुतम् । पाहल दिन, पठा, चतुषा, नवमा, सह, वस्त्रातपत्रपादचव्यसनं व्यसनक्षिणम्।१७। और केतु के उदय में, भरणी, कृतिका | चैत्यबजानां पात्राणां पूर्णानां च निमजनम् For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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