________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अ०७
सूत्रस्थान भाषाटीकासमेत ।
(७९)
दिनमें सौने का परिणाम ।
निद्रा का निषेध । ग्रीष्मे वायवयादानरीक्ष्यराज्यल्पभावतः। बहुमेदःकफाःस्वप्युःस्नेहनित्याश्चनाऽहनि॥ दिवास्वप्नोहितोऽन्यस्मिकफपित्तकरो हिसः विषार्तःकंठरोगीच नैव जातु निशास्वपि । मुक्या तु भाष्ययानाधमद्यस्त्रीभारकर्मभिः अर्थ-मेद और कफ की वृद्धि वाले क्रोधशोकमया लांतानश्वासहिध्मातिसारिणः मनुष्य से तथा जो नित्यप्रति स्निग्ध पदार्थों वृद्धवालावलक्षीणक्षततृशूलपीडितान् । का सेवन करता है उस को प्रीष्म काल में अजीर्णाभिहतोन्मत्तान् दिवास्वप्नोबितानपि । धातुसाम्यंतथाोषांश्लप्माचांऽगानिपुष्यति।
भी दिन में न सोना चाहिये । विषपीडित अर्थ-ग्रीष्म काल में सौना हित है क्यों और कठ रोगी को रात्रि में सोना निषिद्ध है। कि उस काल में बात का संचय होता है, कुसमय निद्रा का परिणाम । आदान काल की रूक्षता होती है और श. अकालशयनान्मोहज्वरस्तमित्यपीनसाः॥६०॥ त्रि बहुत छोटी होती हैं जिससे नींद पूरी
शिरोक्शाफहल्लालस्रोतोरोधाग्निमंदताः। नहीं होने पाती । इस लिये दिनकी
___ अर्थ-कुसमय नींद लेनेसे मोह, ज्वर, ' निद्राकी स्निग्धता से वायुकी शांति, रू- दम शाथलता, पानस, शिराराग, सूजन क्षता का नाश और निद्रा की पूर्ति हो
। हल्लास, मलमूत्रादिके मार्गोका अवरोध जाती है । ग्रीष्म के सिवाय अन्यऋतुओं में ! और अग्निकी मंदता होती है। दिवानिद्रा अहित होती है अर्थात् कफ और अतिनिद्राकी चिकित्सा । र पित्तको उत्पन्न करती है । परंतु जो अ- तत्रोपवासवमनस्वेदनावनमौषधम् ॥६१ ॥ धिक बोला हो, सबारी पर चढा हो, मार्गमें |
| योजयदतिनिद्रायांतीक्ष्णं प्रच्छदनांजनम् ।
नावनलंघन बिता ब्यवायं शोकभीकुधः६२ बहुत चलाहो जिसने मद्यपान किया हो, स्त्री।
एभिरेव च निद्राया नाशाश्लप्मातिसंक्षयात् संगम किया है, जो बोझ ढोने से थक गया
__ अर्थ-कुसमय निद्रासे उत्पन्न हुए रोगोंमें हो. जो क्रोध, शोक और भय से क्लान्त हो उपवास, वमन, स्वेदन ( पसीनलेना ) गया हो, जो श्वास, हिचकी और अतिसार नस्थकर्म का प्रयोग करै । जिसे नींद बहुत से पीडित हो, इसी तरह जो वृद्ध, बालक, आतीहो उसे तीक्ष्णवमन, तीक्ष्ण अंजन, दुर्वल, क्षीण, शस्त्रादि द्वारा क्षत, (जखमी) तीक्ष्णनस्य, उपवास, चिन्ता, स्त्रीसंग, शोक, तथा शूठसे पीडित हो, जिसको अर्जी- भय, और क्रोध, ये हितकारी होते हैं, क्योंकि र्ण हो चोट लगी, हो, जो उन्मत हो, जिस इनसे इलेमा का नाश होने के कारण निद्रा को दिनका सौना अनुकूल हो इन सबको का नाश होजाताहै । क्योंके दिनका सौना हित है, दिन के सौने
निद्रानाशका परिणाम । से इनकी धातु साम्य हो जाती है और कफकी
नितानाशाइंगमदशियरोगौरवभिदाः ॥६३ वृद्विद्वारा शरीर पुष्ट होता है।
जायंग्लानिधभापक्तिरादारोगाश्चवातजाः
For Private And Personal Use Only