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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७२) - अष्टांगहृदये । अ० ७ काली मद्याम्भसोः क्षौद्रे हरित्तैलेऽरुणोपमा ओर भौचक्का होकर देखता है, किये हुए पाकः फलानामामानां पकानां परिकोथनम् । पाप के कारण उस के पसीने आजाते हैं, द्रव्याणामाईशुष्कागांस्याताम्लानिविवर्णते। मृतूनां कठिनानां च भवेत् स्पर्शविपर्ययः ॥ शरीर कांपने लगता है, भय भीत और डरा माल्यस्य स्फुटिताग्रत्वंम्लानिर्गन्धान्तरोद्भवः सा दिखाई देता है, चलने में ठोकर खाताहै ध्याममण्डलता वस्त्रे शदनं तन्तुपक्ष्मणाम् ॥ | और जंभाई लेता है । ( बे प्रसंग हंसना धातुमौक्तिककाष्ठाश्मरत्नादिषु मलाक्तता ॥ | असंबंधित उत्तर देना कहने की इच्छा होने स्नेहस्पर्शप्रभाहानिःसप्रभत्वं तुमृन्मये ११॥ .. अर्थ-विषदूषित मांसरसमें नीली रेखा पर भी चुप होजाना, उंगलियों का चटकाना, दिखाई देती है इसी तरह विषदूषित दूध में सिर खुजाना, ओष्ठ चाटना, पृथ्वी कुरेदना तांवे के रंगकी, दहीमें काले रंगकी, तक्रमें आदि भी लक्षण हैं )। पीली काली, घृत में पानी सी, मद्य और विष दूषित अन्नकी अग्निमें परीक्षा । पानी में काली, शहद में हरी, तेल में लाल प्राप्यान्नं सविषं त्वग्निरेकावर्तः स्फुटत्यति । रेखा दिखाई पड़ती हैं। विषके संयोग से शिस्निकंठाभधूमार्चिरनर्चि:गंधवान् ।१३। कच्चे फल पक जाते हैं और पके हुए सड ___ अर्थ-विषदूषित अन्न अग्नि में डालने जाते हैं । गीले पदार्थ मुरझा जाते हैं और से अग्नि बुझकर सुलगने लगती है और उस सखे विवर्ण होजाते है कोमल और कड़े में चटचट शब्द होने लगता है । अग्नि में पदार्थ छूने में कठोर और कोमल मालूम मोर के कंठ की सी वा इन्दुधनुष की सी पड़ते हैं । फल के अग्रभाग कुंभला जाते हैं अनेक रंग की लोह उठने लगती है, कभी मलीन होजाते हैं और उन की गंध नष्ट ज्वाला उठती ही नहीं है, और कभी सड़े होकर दसरी प्रकार की गंध आने लगती है हुए मांस के जलने की सी गंध आने लगती वस्त्रों में काले गोल दाग पड जाते है उनके है । इस के धुंए से प्रसक, रोमहर्षण, सिरतंतु मारे जाते हैं ( धातु लोहा, काठ, पत्थर | | दर्द, पीनस, नेत्ररोगादि उत्पन्न होजाते है । और रत्न विष के संयोगसे मलीन होजाते हैं। ची तेल में लवणादि खार मिलाकर अग्नि उनकी चिकनाई, छूने में आल्हादकता और में डालने से भी उक्त बातें हो जाती है इस चमक दमक जाती रहती है। मिट्टी के पात्रों लिये विषकी परीक्षा का अब दूसरा उपाय में विष के संयोग से चमक आजाती है । लिखते हैं। विषदेने वाले के लक्षण । पक्षियों द्वारा विष परीक्षा । नियंतेमक्षिका प्राश्यकाकाक्षापस्वरोभवेत्। विषदः श्यावशुष्कास्योविलक्षो वीक्षतेदिशः। उत्क्रोशतिच दृष्ट्वैतच्छुकदात्यूहसारिकाः॥ स्वेदवेपथुमांस्त्रस्तो भीतःस्त्रलितिज्भते ॥ हंसःप्रस्खलति ग्लानिर्जीवंजीवस्य जायते । अर्थ-विषदेने वाले का मुख काला पड़ चकोरस्याऽशिवैराग्यंकोंचस्यस्यान्मदोदयः॥ जाता है, तथा सूख जाता है लज्जा से चारों कपोतपरभृक्षचकवाका जहत्यसून् । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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