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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ( ६० ) www.kobatirth.org गुर्वीसरातुपालक्या अष्टांगहृदये । चौलाई और मुंजात | कूष्मांडादि के सामान्य गुण तंडुलीयोहिमोरूक्षः स्वादुपाकर सोलघुः ॥८) कूष्मांडवकालिंगकविवरुर्तिडिशम् ॥८६॥ मदपित्तविषास्रघ्नः तथात्र सचीनाकचिर्भटंकफवातकृत् । मुंजातंवातपित्तजित् । भेदिविष्टंभ्यभिप्यंदि स्वादुपाकर संगुरु ॥८७॥ स्निग्धंशीतंगुरुस्वादु बृंहणंशुक्रकृत्परम् ॥८२॥ | अर्थ- कूष्मांड (कोयला वा काशीफल ) अर्थ - चौलाई का शाक ठंडा, रूक्ष, पाक तुंब ( तूमी ) कार्टिंग ( तरबूज ) कर्करु और रसमेंमधुर, हलका, तथा मद, पित्त, ( कूष्मांडविशेष ), काकडी, टिंडिश (डेंटविष और रक्तविकारों को दूर करता है । स ), त्रपुस (खीरा), चीनाक, और चिजातका शाक वायु और पित्त को जीतने भेट ( फूट ) ये कफ वातकारक, भेदी, बाला, स्निग्ध, ठंडा भारी, मधुर, पुष्टिकारक त्रिष्टंभी, अभिष्यन्दी, पाक तथा रस में मऔर अतिशय वीर्योत्पादक है । धुर और भारी होते हैं । एक ही वस्तुमें भदी और विष्टंभी दोनों गुण नहीं हो सकते हैं परन्तु यहां बहुत से द्रव्य हैं जिनमें कोई भेदी और कोई विष्टंभी है । पालक - पोई - चंचु | Sani और खीरा । मदनीचाप्युपोदका । पालक्यावत्स्मृतश्चंचुः सतुसंग्रहणात्मकः ८४ अर्थ - - पालक का शाक भारी और रेचक है । पोई का शक मदनाशक है । चंचु का शाक पालक के समान गुणकारक है केवल यह अंतर है कि यह मलको बां है । विदारीकंद | त्रिशरीवातपित्तघ्नीमूत्रला स्वादुशीतला । जीवनवृंहणीय गुर्वीवृष्यारसायनम् ॥८५॥ अर्थ विदारीकंद वातपित्त नाशक, मूत्र निःसारक, मधुर, शीतल, जीवन गुणयुक्त, पौष्टिक, कंठको हितकारी, भारी, वीर्यजनक और रसायन है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ० ६ घल्ली फलानां प्रवरंकूष्मांडवातपित्तजित् । वस्तिशुद्धिकरंवृष्यम् त्रपुसंत्वतिमूत्रलम् ॥ ८८ ॥ अर्थ-वेल में लगनेवाले फलोंमें कूष्मांड उत्तम होता है, यह वात पित्तनाशक, वस्तिका शुद्ध करनेवाला तथा वीर्यजनक है, । खारा मूत्रको बहुत निकालता है । तूंबी आदिके गुण | तु रूक्षत रंग्राहिकालिंगैर्वारुचिर्भटम् । बालंपित्तहरं शीतं विद्यात्पक्कमथोऽन्यथा ८९ अर्थ- तूंबी, बहुत रूक्ष और विबंधकारकहें । तरबूजा, काकडी, और फूट अपक हों तो पित्तनाशक और ठंडे होते हैं और पकने पर पित्तवर्द्धक और गाम होते हैं । For Private And Personal Use Only जीवंती के गुण | चक्षुप्या सर्वदोषघ्नी जीवंतनिधुराहिमा । अर्थ-जीवती का शक नेत्रपक्ष में हि शीतके गुण | तकारी है, संपूर्ण दोनों को नाश करनेवाला, शीर्णवृत्तं सक्षारपित्तलक वातजित्। रोचनंदीपनंहृद्यमष्टीलाऽऽना लघु ॥९०॥ मधुर और शीतवीर्य है ।
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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