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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ०६ अष्टांगहृदये। से तप्त खीपडा । अंगार लकडीके कोयले)। अपनी चोंचसे तोडकर खाते हैं इस लिये मांसवर्ग:-मृगवर्गः ॥ प्रतुद कहलाते हैं। मेंडक, गोधा, सर्प, सेह हरिणैणफुरंगर्भगोकर्णमृगमातृकाः ॥४१॥ आदि बिलोंमें रहनेवाले बिलेशय कहलाते हैं शशशंबरचारुष्कशरमाद्या मृगाः स्मृताः । प्रसह वर्ग। अर्थ- हरिण, ( सफेद हरिण ) एण गोखराश्वतरोष्ट्राश्वद्वीपिसिंहक्षवानरा॥४६॥ ( कृष्णसार ), कुरंग ( चारुलोचन ) ऋष्य मार्जारम्पकव्याघ्रवृकवभ्रतरक्षवः। ( नीलांड ), गोकर्ण ( ताम्रवर्ण ), मृगमा लोशकजम्बुकश्येनचाषवान्तादवायसाः ४७ शशघ्नीभासकुररमधोलूककुलिंगकाः। तृका ( कुरंगनी ), शश ( खरगोश , शं धूमिकामधुहाचेतिप्रसहामृगपाक्षणः ॥४८॥ बर ( सावर ) चारुक और शरम ये मूगों _अर्थ- गौ, गधा, खिच्चर, ऊंट, घोडा, के साधारण नामहैं । इनके अतिरिक्त काल- द्वीपी, सिंह, रीछ, बंदर, विल्ली, चूहा, बाघ पुच्छा, पृषतादिक और भी बहुतसे हैं। भेडिया, नकुल, तरक्षु, लोपाक, गीदड, सिविष्किरोंके नाम । करा, चील, कुता, कौआ, शशनी, भास, लाववर्तीकवाररक्तवर्मककुक्कुभाः॥४१॥ कुररी, गिद्ध, उल्लू, कुलिंग, (चिडा ), धूकपिजलोपचनाख्यवकोरकुरुवाहवः । मिका, मधुहा, येसब बलपूर्वक खातेहैं इस वर्तकोवर्तिकाचैवतित्तिरिक्रकरःशिखी॥४३॥ ताम्रचूडाख्यवकरगोनर्दगिरिवर्तिकाः।। से इन्हें प्रसह कहते हैं। तथाशारपदेन्द्राभवारटाश्चेतिविष्किराः ४४ महामृगों के नाम । अर्थ- लाव, बटेर, वार, रक्तवर्त्मक, समरश्चमरःखडूगोगबयश्चमहामृगाः॥४९॥ कुकुभ, जंगली मुर्ग जिसकी आंख लाल । अर्थ-शूकर, भेंसा, न्यंकु, रुरु, रोहित होती है, सफेद तीतर, चकवा, चकोर, हाथी, सुमर, गेंडा और रोझ ये महामृग उत्कोश, भारुई, बटेर, तीतर, कृकर, मुर्ग, कहलाते हैं। बगुला, कक, सारस, गिरवर्तिका, शारद, जलचरवर्ग । इन्द्राभ और वारटा ये सब विष्किर अर्थात् । १ वाकर अथात् हंससारसकादंबबककारंडवप्लवाः । पावसे बखेरकर खानेवाले पक्षी होतेहैं। बलाकोत्कोशचक्राहमद्गुक्रौंचादयोऽपचराः प्रतुदवर्ग और बिलेशय। ___ अर्थ-हंस, सारस, कलहंस, वगुला, शुजीवंजीवकदात्यूह,गाहशुकसारिकाः। क्लहंस, कवाड, बलाका, उत्क्रोश, चक्रलटवाकोकिलहारीतकपोतचटकादयः॥४५॥ वाक जलकाक और क्रौंच ये सब जलचर, प्रतुदा भेकगोधाहिश्वाविंदाद्याविलेशयाः।। अर्थ- जीवजीवक, दात्यूह ( जलकाक) ___मत्स्य वर्ग। भृगाहू ( भौंराविशेष ), तोता, मैंना, लाट, मत्स्यारोहितपाठीनकूर्मकुंभीरकर्कटाः। कोकिला, हारीत, कपोत, चिडिया, ये सब शुक्तिशंखोइशंबूकशफरीवमिचन्द्रिकाः ॥५१॥ रणाः । For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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