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( ३ )
खोज करने वाले विद्वान् भी नहीं जानसकते । ऐसी अनेक बातें इस सुश्रुतः संहिता में भी हैं । यह ग्रन्थ अत्यंत गंभीर और कठिन है इससे संस्कृतके उत्तम कोटिके विद्वानों के सिवाय दूसरे लोग इससे लाभ नहीं उठा सकते थे। इसी कारण से इसकी भाषाटीका का होना अत्यंत आवश्यक था सो ईश्वर कृपा से मथुरा निवासी श्यामलालजी ने करवाकर बडा उपकार किया । यह ग्रन्थ हमारे पास समालोचना के किये आया है ।
इस ग्रंथ में ऊपर मूल और नीचे पंडित कृष्णलालजी की कीहुई भाषा है । मुम्बई के टाइप और उत्तम कागज में अच्छे ढंग से ग्रंथ छपा है ।
भाषान्तर शुद्ध हिन्दी भाषा में जैसा चाहिये वैसा किया है । केवल सीधा भाषांतर करने से प्रयोजन न खुले ऐसे स्थानों में भले प्रकार से अभिप्राय खोला गया है, वह भी ऐसा कि व्यर्थ ग्रंथ नहीं बढायागया । अनेक स्थलों पर मूल. ग्रंथसे विशेष बातें दूसरे ग्रंथों से भी उठाकर रखदीं और उनका भाषांतर भी करदिया । आवश्यक्तानुसार अनेक स्थानों में नोट अर्थात् टिप्पणी भी की गई है । प्रयोजन यह कि इस बहुमूल्य ग्रंथका सब का एक विद्वान पंडित के हाथ से हुआ है जो इस विषयको भी जानता है कहीं २ भाषांतर करने में
धानी रही प्रतीत होती है परन्तु ऐसे भारी ग्रंथ में होना सम्भव है । मूल• बड़े अक्षरों में और भाषाटीका उससे थोडे छोटे अक्षरों में है ।
ग्रंथ आदि में इससे सम्बन्ध रखनेवाले चित्र दिये हैं जिनमें डाक्टरी चित्रों से सहायता ली जान पडती है । यह कहना कठिन है कि ये चित्र सुश्रुत के कथनसे कितने मिलते हैं। आदि में बहुत बडी और सविस्तर सूची दांगई है जिसमें भब बातों के निकालने में बडी सहायता मिले । बिलायती कपडे की स्वर्णाक्षर सहित उत्तम जिल्द बंधी है । ग्रन्थ सब प्रकार से उत्तम और प्रत्येक के संग्रह करने योग्य है । मोल १०० रुपये |
गर्गसंहिता ।
मूल वृजभाषा टीका सहित ।
यह ग्रंथ श्रीकृष्णचन्द्र महाराज के कुल पुरोहित श्री गर्गाचार्य्यजी का बनाया हुआ है इसमें भगवान के अनेकानेक ऐसे गूढ रहस्य हैं जो श्रीमद्भागवतादिक ग्रंथों में भी नहीं हैं इसका श्रवण और पठन भक्तिशून्य मनुष्य के हृदय में भी भक्तिका संचार करते हैं इसके श्लोकों की रचना ऐसी कर्णप्रिय है कि सुनते सुनते जी नहीं भरता है जो श्रीकृष्णचन्द्र के भक्त हैं वह इम ग्रन्थ को लिये बिना कदापि नहीं रहेंगे मुम्बई के मोटे अक्षरों में छपा हुआ मू० ६) रु०
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