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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अ. ४० उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत । (९७९) शर्करा के साथ सेवन करता है उस में | मिलाकर पान करे और शर्करा, घत और शतस्त्री संभोग की शक्ति बढ़ जाती है, दूधके साथ अन्नका भोजन करे, इससे मैथुऔर वह प्रथम समागम कासा सुख अनुभव । नकी अत्यन्त सामर्थ्य वढ जाती है। करता है। अन्य प्रयोग। अन्य प्रयोग। यः पयस्यांपयःसिद्धांखादेन्मधुघृतान्विताम् चूर्ण विदार्या बहुशः स्वरसेनैव भावितम् । पिबेद्वाष्कथणं चानु क्षीरं न क्षयमेति संः। क्षौद्रसर्पियुतं लीढ्वा प्रमदाशतमृच्छति । । अर्थ--जो मनुष्य दूधके साथ क्षीर- अर्थ -विदारीकंद के चूर्णको विदारीकंद काकोली को पकाकर घी और शहत के के रससे ही बहुत बार भावना देकर उस | साथ पान करै ऊपर से बहुत दिनकी व्याही चूर्णको घी और शहत्त के साथ चाटने से हुई गौ का दूध पीवै तो उसका शुक्र क्षीण शत- स्त्रीगमन की सामर्थ्य होजाती है। । नहीं होने पाता है । अन्य चूर्ण। अन्य प्रयोग ।। कृष्णाधात्रीफलरजः स्वरसेन सुभावितम्। स्वयं गुप्तेक्षुरकयो/जचूर्ण सशर्करम् ३१ शर्करामधुसर्पिर्मिीढ्वा योऽनु पयःपिबेत् धारोष्णेन नरः पीत्वा पयसा रासभायते स नरोऽशीतिवर्षोऽपि युवेव परिदृष्यति । अर्थ-*च और तालमखाने के बीजों ___ अर्थ--पीपल और आमले का चूर्ण करके को पीसकर चर्ण करके और शर्करा मिलाउसमें आमले के रसकी भावना दे और कर धारोष्ण दूधके साध पान करने इसको शर्करा, मधु और घी के साथ चाट- वाला मनुष्य गधे की तरह मैथुनोन्मत्त हो कर ऊपर से दूधका अनुपान करे तो अस्सी | जाता है। वर्षका वृद्ध भी तरुण की तरह स्त्री संगम __ अन्य प्रयोग ॥ में समर्थ होजाता है। | उच्चटाचूर्णमप्येवं शतावर्याश्च योजयेत्॥ . अन्य प्रयोग । अर्थ--उक्त रीतिसे भूम्यामलक और कर्ष मधुकचूर्णस्य घृतक्षौद्रसमन्वितम् ॥ | पयोऽनुपानं योलिह्यानित्यवेगः स नाभवेत् शता ECH शतावरी के चूर्णका प्रयोग करने से भी अर्थ--मुलहटी का चूर्ण एक कर्ष लेकर । उक्त फल होता है। उसमें घी और शहत मिलाकर चाटे ऊपर दही की मलाई का प्रयोग । से दधका अनुपान करे, उस मनुष्य का चद्रशुभ्रं दाधसरं ससिता षष्टिकोदनम् । मैथुनवेग कभी प्रनष्ट नहीं होता है। | पटे सुमार्जितं भुक्त्वा वृद्धोऽपि तरुणायते ___ अन्य प्रयोग ॥ अर्थ-चन्द्रमाके समान सफेद वस्त्रमार्जित कुलीरशुंग्या याकल्कमालोडय पयसाबिर दहीकी मलाइके साथ शर्करा मिला हुआ शाली सिताघृतपयोनाशी स नारीषु वृषायते ।। चांवलों का भात ख़ानेसे वृद्ध भी तरुण के अर्थ-काकडासींगी के कल्क को दूधमें | समान आचरण करने लगता है। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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