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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org ( ९७० ) जीत डालदे जब शिलाजीत घुलकर एक रस हो जाय तब इसको सुखाकर फिर उक्त काढे में डाल देवै । इस तरह उपयुक्त काढे सात की भावना दे । शिलाजीत का प्रयोग | अथ स्निग्धस्य शुद्धस्यघृततिक्तकसाधितम् त्र्यहं युजीत गिरिजमेकैकेन तथा त्र्यहम् ॥ फलत्रयस्य यूषेण पटोल्या मधुकस्य च । योगयोग्यं ततस्तस्य काळापेक्षं प्रयोजयेत् ॥ शिलाजमेव देहस्य भवत्यत्युपकारकम् । गुणान्समग्रान् कुरुते सहसा व्यापदं न च ॥ अर्थ- उक्त रीति से शिलाजीत को भावना देकर रोगी को स्नेह द्वारा स्निग्ध और विरेचनादि द्वारा शुद्ध करके तिक्त द्रव्यों से सिद्ध किया हुआ घी तीनदिन तक पान करावे । तत्पश्चात् तीन दिन तक त्रिफला के काढ़े के साथ, तीन दिन तक पर्व के काढ़े के साथ और तीन दिन तक मुलहटी के काढ़े के साथ, उक्त भा वना दिये हुए शिलाजीत का प्रयोग करे । शिलाजीत का प्रयोग करने के पीछे देशकाठादि की विवेचना करके यथोपयुक्त औषध देना चाहिये । इस नियमसे शिलाजीत का प्रयोग करने पर शरीरको उपकारी होगा, तथा सब प्रकार के गुण करेगा और किसी प्रकार की विपद उपस्थित न होने देगा | शिलाजीत का त्रिविध प्रयोग | एकत्रिसप्तसप्ताहं कर्षमर्धपलं पलम् । हीनमध्योत्तमो योगः शिलाजस्य क्रमान्मतः अर्थ - अवस्थानुसार एक, तीन वा सात सप्ताह तक शिलाजीत का प्रयोग करे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हृदय | | इसकी हीनमात्रा एक कर्ष की, मध्यमात्रा आधेपल की और उत्तम मात्रा एक पल की होती है । शिलाजीत को रसायनत्व | अ० ३९ संस्कृतं संस्कृते देहे प्रयुक्तं गिरिजाह्वयम् । युक्तं व्यस्तैः समसेर्षा ताम्रायोरूप्यहेमभिः क्षीरेणालोडितं कुर्याच्छीघ्रं रासायनं फलम् कुलत्थां काकमाचच कपोतांश्च सदात्यजेत् अर्थ-स्नेहन और शोधनद्वारा शरीर को शुद्ध करके वातादि दोषों को नाश करने वाले द्रव्यों से भावना दिये हुए शिलाजीत को दूध में मिलाकर इसको तांवे लोहे, रूपे और सौने इनमें से किसी एक के साथ वा सबके साथ प्रयोग करे । इससे शीघ्रही रसायन का फल होता है । इस पर कुलथी, मकोय और कबूतर का मांस वर्जित है | शिलाजीत को सर्वरोगनाशकता । ब सोस्ति रोगो भुवि साध्य रूपो जत्वश्मजं यं न जयेत्प्रसहा । तत्कालयोगैर्विधिवत्प्रयुक्तं स्वस्थस्य चोर्जी विपुलां दधाति । १४३ । अर्थ - पृथ्वीपर साध्यलक्षणों से युक्त कोई ऐसा रोग नहीं है, जिसको शिलाजीत शीघ्र पराजय न कर सकता हो, इसका ठीक समय में विधिवत् प्रयोग करने से स्वस्थ मनुष्य अत्यन्त बलशाली होजाता है। कुटी प्रवेश विधि | कुटीप्रवेशः क्षणिनां परिच्छदवतां हितः। अतोऽन्यथा तु येतेषां सूर्यमारुतिकोषिधिः For Private And Personal Use Only अर्थ- जो मनुष्य कुटी प्रवेश रूप व्यापार के साधन में स्वतंत्र और सकुटुंबी है उनके
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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