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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५.३९ उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत । (९५९) त्रिफला सर्वरोज्नी मेधायुः स्मृतिद्धिता अर्थ-बालछड,कुटकी, दुग्धका,मुलहटी अर्थ-मुलहटी,वंशलोचन, पीपल,संघा- चंदन, अनन्तमूल, क्च, त्रिफला, त्रिकुटा, नमक, रूपा, तांबा, सीसा, संग, लोहा, हलदी, दारुहलदी, पर्वल और सेंधानमक । सुर्वण, वच, मिलाहुआ घी शहत शर्करा । इन सब द्रव्यों को समानभाग लेकर अच्छी इसमें से प्रत्येक के साथ त्रिफला का सेवन | तरह से पीसकर इस कल्क से तिगुना करने से सबरोग नष्ट हो जाते हैं । तथा शंखपुष्पीका रस मिलावे । तथा दूध और मेध', आयु, स्मृति और बुद्धि बढती हैं । घी एक एक प्रस्थ मिलाकर पकावे । इस पह रसायन बहुत उत्तम है। रसायन के सेवन करने से जड मनुष्यभी . अन्य रसायन । .. मंडूकपः स्वरसं यथाग्नि वाचाल,श्रुतधारी सुनीहुईवातको याद रखने. क्षीरेण यष्टीमधुकस्य चूर्णम् । वाला ) प्रतिभाशाली और रोगरहित होताहै। रसं गुइयाः सहमूलपुष्पयाः पंचारविंद रसायन। .... कल्कं प्रयुजीत व शंखपुष्प्याः ॥४४॥ पेप्यमृणालविसकेसरपत्रवीत मायुःप्रदान्यामयनाशनानि पलाग्निवर्णस्वरवर्धनानि ।। सिद्धं सहेमशकलं पयसाच सर्पिः । पंचारविंदमिति तत्प्रयितं पृथियां .. मेध्यानि चैतानि रसायनानि प्रभ्रष्टपौरुषबलप्रतिभैनिषेव्यम् ॥४८॥ मेध्या विशेषेण तु शंखपुष्पी ॥४५॥ . अर्थ-कमलनाल,कमलकंद, कमलकेसर, अर्थ-अग्निवल के अनुसार मंडूकपर्णी का स्वरस । दूध के साथ मुलहटी का चूर्ण कमलपत्र, कमलबीज, इस पंचांगको अच्छी जड और पुष्पसहित गिलोय का रस । तरह पीसकर इसमें सुवर्ण की भस्म, दूध और घी के साथ पाक करे । यह पंचारतथा. शंखपुष्पी का करक प्रयोग करे । विन्द रसायन उसको देनी चाहिये जो इनमें से हर एक आयुको बढानेवाला,रोगनाशक, बल अग्निवर्ण और स्वरको बढ़ाने । पार | पौरुषबल और प्रतिभा से हीन होगया है ।। वाला और मेघाजनक है । शंखपुष्पी का - अन्य प्रयोग । करक सो बहुतही मेधावक है। यत्रालकंददासरवादिपक अन्य प्रयोग। नीलोत्पकस्य तदपि प्रथितं द्वितीयम् नहद कटुरोहिणी पयस्या सर्पिश्चतुकुवलयं सहिरण्यपत्र मधुकं चंदनसारिवोग्रगंधा। मेध्यं गधामपि भवेत् किमु मानुषाणाम् त्रिफला कटुकभयं हरिद अर्थ-नीलकमल का नाल, कंद, पत्र सपटोलं लवणं च तैः सुपिष्टः ॥४६॥ और केसर इन चारों को अच्छी तरह पास. त्रिगुणेन रसेन-शंखपुया कर इसमें सौनेकी भस्मको दूध और घीके सपयस्क वृतानलमणं विपकमा । | उपयुज्य भारोऽपि भाग्मी । साथ पकाकर सेवन करनेसे मेधाको अत्यश्रतधारी प्रतिभानधानरोगः ॥४७॥ | न्तवृद्धि होती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020075
Book TitleAshtangat Rudaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVagbhatta
PublisherKishanlal Dwarkaprasad
Publication Year1867
Total Pages1091
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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