________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
म. ३७
उत्तरस्थान भाषाटीकासमेत ।
(९३९).
क्योंकि शेष रहजाने पर वह पचाहमा विष तथा द्रोणां महाद्रोणां मानसींसजमणिम् फिर धेग धारण करता है, अथवा दृषी विष | विषया
| विषाणि विषशांत्यर्थ वीर्यवेति च धारयेत् होजाता हैं।
___ अर्थ-कर्केतननामक मणि विशेष, मरविषापगम में कर्तव्य। तकमणि, हीरा, गजमुक्ता, वैदूर्यमाण, विषापायेऽनिलं क्रुद्धं स्नेहादिभिरुपाचरेत्। गर्दभमणि, पिचुक, बिषदूषिका, हिमालय तैलमद्यकुलत्थाम्लवज्यैः पवननाशनैः ८७ पर उत्पन्न हुई सोमराजी, पुनर्नवा, द्रोण, पित्तं पित्तज्वरहरैः कषायस्नेहवस्तिभिः ।। महाद्रोण, मानसी, सर्पमणि आदि उप्रवीर्यसमाक्षिकेण घर्गेण कफमारग्वधादिना । वाली मणियों को विषकी शांति के निमित्त
अर्थ-विष के दर होजाने पर भी विष धारण करे। से कुपित हुए वायु का तेल, मद्य, कुलथी,
छत्रादि धारण । भौर खटाई से रहित वातनाशक स्नेहादि
नहार छत्री जर्जरपाणिश्च चरेद्रात्रौ विशेषतः । के प्रयोग से शमन करे, पित्तज्वर नाशक | तच्छायाशब्दवित्रस्ताः प्रणश्यति भुजंगमाः कषाय, और स्नेहवस्ति द्वारा विष से कुपित अर्थ-सब समय और विषेश करके हुए पित्तका का शमन करे, तथा मधुसयुंक्त रात्रिमें जो छत्री लगाकर और ताली फटआरग्वधादि गणोक्त द्रव्यों के काथ से विष कार कर विचरते हैं. उनकी छत्री की छाया से कुपित हुए कफ का शमन करे ।
से और ताली के शब्दसे डरकर सर्प भाग शंकाविष में कर्तव्य । जाता है। सिता वैगंधिको द्राक्षापयस्या मधुकं मधु । इतिश्री अष्टांगहृदयसंहितायां भाषाठीपाने समंत्रपूतांबुप्रोक्षणं सांत्वहर्षणम् ८९ कान्विताय उत्तरस्थानेसर्पविषप्रतिसोगाभिरतेयुंज्यात्तथा शंकाविषार्दिते ।। ___ अर्थ-सांगाभिहत ( सर्प के देह से
षेधोनाम षट्त्रिंशोऽध्यायः। चोट लगाहुभा ) रोगी के तथा शंका विष से पीडित रोगी को मिश्री, गोंदी, दाख,
सप्तत्रिंशोऽध्यायः। दूधी, मुलहदी और शहत्त इन सब द्रव्यों से तयार किया जल मंत्र द्वारा अभिमंत्रित अथाऽतः कीटलूतादिविषप्रतिषेधं व्याख्याकरके पान करायै, उसी जल से प्रोक्षण करे, आश्वासन वाक्य कहै और रोगी को
| अर्थ-अब हम यहां से कोटलूतादि प्रसन्न करने का प्रबन्ध करै ।।
| विषप्रतिषेध नामक अध्यायकी व्याख्या कर्केतनादि धारण ।
| करेंगे। फर्केतनं मरकतं यजं पारणमौक्तिकम् ९० . चारप्रकार के कीट। .... पैडूर्यगर्दभमणि पिचुकं विषमूर्षिकाम् । सर्पाणामेव विण्मुत्रशुफ्रांडशवकोथजाः । हिमवनिरिसंभूनां सोमराजी पुनर्नवाम् ९ दोषैर्व्यस्तैःक्षमस्तैश्चयुक्ताःकोटाश्चतुर्विधाः
-
स्यामः।
For Private And Personal Use Only