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________________ San Mahavir Jain Aradhana Kenda Acharya Sh Kailassagaran Gyanmanda حلاجل للجلاحلام बार त्रिकाल संध्या पूजा करती देखकर इसको पूछा, इसने पूजा का माहात्म्य बताया। तुमको पूर्ण श्रद्धा हई,, और तुमने भी श्री जिनराज की पूजा त्रिकाल करना प्रारम्भ कर दिया। उस जिन पूजा के प्रभाव से तुम दोनों ही समाधि मरण प्राप्त हो देवलोक में उत्पन्न हुए । वहां देव सम्बन्धी बहुत से सुख भोग कर वहां से च्युत हो ऐसा बड़ा राज्य और ऋद्धि पाई है। फिर अगाड़ी भी देव-नरके सुख पाओगे। तुम कृतपुण्य हो, जन्मांतर में तुमने श्रीवीतराग की भक्ति की है इससे अन्त में अविचल मुक्ति सुख भी पाओगे। यह दोनों ज्ञानी के मुख से जिन पूजा का प्रभाव और पूर्वभय का सम्बन्ध सुन कर हर्षित हए । कमार । ने विनय कर प्रार्थना की-हे भगवन् ! मेरी बड़ी बहिन अब कहां है? जिसके साथ मैंने पूजा फल उर्जन किया था। मुनिपति कहने लगे "हे कुमार ! वह भी सौधर्मेन्द्र देवलोक के सुख भोग कर इस भव कर्म प्रभाव से तुम्हारी गृहिणी हुई है।" ऐसे आचार्य के मुख से अपना विरुद्ध चरित्र सुन राजकुमार और विनय श्री को मुनि के प्रभाव से जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ, उससे उन दोनों ने अपने पूर्व भव का सम्बन्ध याद किया। जैसे गुरु ने दर्शाया Satarajasata For Private And Personal use only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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