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________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Sh Kailassagar Gyanmandi लिविजनजिक ठाट से सुरपुर मंत्राया। तब श्री सूरविक्रम राजा ने बड़ा भारी उत्सव करके वधाई दी और सन्मान के साथ पुरप्रवेश कराया। जयकुमार उत्कृष्ट विवाह मुहूर्त में मङ्गन बाजों के बजने पर विवाह मण्डप में गया और उसने कुमारी का पाणिग्रहण किया, विवाह कार्य होने के पीछे हथलेवा छोड़ा उस समय राजा ने हाथी, घोड़ा, रथ, दास दासी, वस्त्र, भूषण, और मणि माणिक्यादि, सोना, चांदी, तेल, फुलेल, आदि उत्तम वस्तुऐं' दी, और रहने को एक F आवास करवा दिया-उसमें रह कर आनन्द से वह जयकुमार विनयश्री के साथ पांच प्रकार के विषय सुख भोगने गाँ लगा । वहां रहते बहुत दिन बीत गये। कुछ समय बाद राजा ने महोत्सव के साथ उसको अपने घर विदा किया। वह जयकुमार अपनी स्त्री म के साथ चला । चलते २ एक वन में पहुंचा; वहां कई साधुओं के परिवार सहित एक आचार्य को देखा।। वे साधुगणस्वामी प्राचार्य श्वेत वस्त्र धारण करते हैं और निर्मल चार ज्ञान के धारक हैं जिनके दांतों की क्रान्ति धवली है, नाम भी उनका निर्मल ही है। ऐसे आचार्य को बन में देखकर विनयश्री ने अपने पति से कहा, हे स्वामिन् ! यह बड़े ज्ञानी मुनि التواصل وتوصللي For Private And Personal use only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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