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________________ Sh i n Aradha kende www.kobatirtm.org Acharya Sh Kailassagar Gyanmandit श्री० अष्ट लक्ष्मी के जैसे रूपवती श्रीमाला नामकी थी। इसकी कृक्षि में जिनमती का जीव देवलोक से च्युत होकर कन्या पने उत्पन्न हुआ। माता-पिता ने सब कुटुम्ब की निमन्त्रणा कर विनयगुण सहित, सरोवर में राजहंसी के जैसे + रमण करने वाली उस कन्या का नात विनयश्री स्थान किया। पुत्री के गुण हाक्ष्मी और पार्वती के समान सर्वत्र प्रसिद्ध होने लगे । रूप और लावण्य से बड़े • योगियों के मन को चलायमान करती थी, तो नगर के लोग उस को देखकर मोहित होंवें इसमें कुछ विशेषता नहीं। अब वह कन्या माता-पिता को अत्यन्त प्रिय होती हुई यौवनावस्था को प्राप्त हुई, माता ने उसे विवाह योग्य जाना और शृङ्गार कराकर राजसभा में राजा के पास भेजी, वह राजकुमारी मनुष्यों का मनहरण करती हुई आस्थान मण्डप में राजा की गोद में जाकर बैठ गई, राजा ने प्यारकर मस्तक चुबन किया और वह इसकी यौवन अवस्था देख कर चिन्ता समुद्र में दब गया। अन्त में धैर्य धारण कर विचार करने लगा यह कन्पारस * किसको देऊ। मुझे तो इसके योग्य गुणी वर पृथ्वी मण्डल में नहीं दीखता है। इस प्रकार उदास पिता को देख कर राजपुत्री बोली-हे पिताजी ! आप चिन्ता न करें । भूमण्डल के समस्त राजकुमारों को निमन्त्रण करिये, मैं अपने चित्त के अनुसार उनमें से पति ग्रहण कर लूंगी। यह सुन राजा 1 ने कहा, हे वत्से! जैसा तेरा मनोरथ है वैसा ही कार्य कराया जावेगा, इतना कह पुत्री को माता के पास भेज दिया। JAMPA . +॥३७॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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