SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री अष्ट प्रकार पूजा ॥ ३० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हर्ष को प्राप्त हो हर्ष के आसू टपकाने लगी, स्नेह दृष्टि से देखते २ मन सन्तुष्ट नहीं हुआ। कुमार भी पूर्व स्नेह से माता को हरण कर लेगया । राजा के सुभट, सामन्त आयुवादि लेकर ऊंची भुजा कर इधर उधर दौड़ने लगे। नगर में सब जगह यह कोलाहल हो गया, “देखो राजा की रान को कोई पुरुष हरण कर ले जाता है।" राजा भी बड़ा शूरवीर है परन्तु पदचारी है भूमि पर इस का वश चल सकता है आकाश मार्ग में नहीं। थोड़ी देर तक तो सब लोग आकाश की तरफ देखते रहे, बाद वह विद्याधर देखते २ अदृश्य हो गया और अपने नगर में चला गया। वह राजा निराश हो विचार करने लगा, मुझे यह दुःख अग्नि से जले हुए पर खार के समान अति दुस्सह हुआ, एक तो पुत्र का नाश हुआ दूसरे रानी का हरण हुआ। इस प्रकार अत्यन्त दुःखित हो कर अपने नगर में रहने लगा । अपने घरकी मालिक साधारण स्त्री के नहोने से ही बड़ी पीड़ा होती है, जिस में यह राजा की प्रिय रानी । अब वह चौथा अंडे का जीव देवलोक में अवधिज्ञान से पूर्वभव संबन्ध जान कर विचार करने लगा मेरे भाई ने अपनी माता का स्त्री बुद्धि से हरण किया है। तब तत्काल अपने विमान से निकलकर उसको समझाने For Private And Personal Use Only ॥ ३० ॥
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy