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________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shil kailassaganser Cyanmandir प्रकार ॥ MAMA चलचित्र सुभट भेज कर जयसुन्दरी के पुत्र को मंगवा लिया । पुत्र के वियोग से उधर माता विलाप कर रही है। इधर इसमें यालक को पहिले स्नान कराया फिर चन्दन, अक्षत, पुष्प से पूजा की। धूप, दीप, नैवेद्य की सामग्री लगा कर होम-क्रिया प्रारम्भ की। अपने पुत्र के शरीर पर इसको कुल देवी के मन्दिर में ले गये । उद्यान में जहां देवी का मन्दिर था वहां पड़ा उत्सव कराया गया, अनेक बाजे बाजने लगे। यह रानी रतिसुन्दरी भी अपने परिवार सहित कई नर नारियों का नृत्य करती यहां देवी के मन्दिर में जा रही है। नगर के लोग भी वहां महोत्सव में इकट्ठहोगये। इस अवसर में एक कांचनपुर का स्वामी विद्याधर राजाओं में अग्रेसरी आकाश मार्ग से जा रहा था। उसने बालक को बड़ी क्रान्ति और तेज युक्त देखा और विचारा कि यह बड़ा पुण्यवान है और सूर्य समान अथवा * तपाया हुधा सुवर्णवत् तेजस्वी है। ऐसा विचार अलक्ष्य (गुप्त) रीति से बालक को ले लिया और अपनी रानी के पास जाकर सौंपा और कहा, हे प्रिये ! हे कृशोदरी ! यह पुत्र तेरे उत्पन्न हुआ है। यह सुन विद्याधर रानी बोली-हे महाराज ! आप क्या कहते हैं ? मैं तो वन्ध्या हूँ और निर्दय देव ने मुझको बहुत दुःख दिया है, मेरे भाग्य में पुत्र की उत्पत्ति कहाँ ? पुन: विद्याधर राजा आनन्दित हो हंस कर बोला-हे सुन्दरी ! अपने कुल देवता ने यह बालक दिया है सो इसका पालन-पोषण करो। इस प्रकार संशय दूर कर प्रसन्न हुई । रानी ने रन राशि ॥ २ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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