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________________ Shin Maharan Aradhana Kendra www.kobatrum.org Acharya Sh Kailassagansar Gyanmandir श्री अट प्रकार ॥ २०॥ पूजा जापपूजाएं कराई गई। कहीं कुलदेवी का आराधन प्रारंभ किया । इस तरह करते २ एक रात्रि के पिछले प्रहर । में एक यक्ष प्रत्यक्ष होकर बोला, हे राजन् तू सोता है या जागता है ? ऐसे वचन सुनकर राजा बोला । हे देव ! । ऐसे दुःख भोगने वाले को नींद कहां ? यह सुन यक्षराज बोला । हे राजन् मैं तुम्हारे दुःख दूर होने का उपाय बतलाता है। यदि पटरानी अपने शरीर का तेरे पर उतारा करे और अग्नि कुड में अपना देह होम देवे, तो T. तुम्हारा जीवन हो और आयु बढ़े, अन्यथा कोई उपाय नहीं। ऐसे वचन कहकर यक्षराज अपने स्थान चलागया। अब राजा विस्मित होकर विचार करने लगा, क्या यह इन्द्रजाल है अथवा दुःख से मुझको कोई स्वप्न हुआ है ? यह स्वप्न तो नहीं, यह मैंने अभीप्रत्यक्ष में यक्ष देखा है, उसने वचन कहे हैं । इस प्रकार संकल्प करते हुए रात्रि व्यतीत हुई, उदयाचल के शिखर पर सूर्य उदय हुआ। राजा ने सभा में सब रात्रि का वृत्तान्त कह पा दिया । सब मंत्रियों ने मिलकर राजा से कहा हे स्वामिन् ! यदि एक अपने जीवन के लिये सब परिवार की वलि कर दी जाय तो हानि नहीं, केवल रानी की क्या चिन्ता ? ऐसा सुनकर राजा बोला, जो संसार में सत्यपुरुष त होते हैं वे अपने जीवन के लिये दूसरे की जीव हत्या नहीं कराते। ऐसा अकार्य करना सर्वधाअनुचित है। मेरा *शरीर रहो या न रहो, ऐसा कार्य नहीं करूंगा। جمال المطلمحله ॥२७॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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