SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 64
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ShaMahavir Jain ArachanaKendra Acharya Sh Kailasagasar Gyanmandir ऐसे शुको के वचन सुन हँस कर महारानी श्रीकान्ता बोली, हे देव ? मेरे वचन से इसके पति को । छोड़ दो और प्रतिदिन अन्नदान भी दो। ऐसा सुनकर राजा बोला, हे भद्र शुकी तुम अपने पति के साथ अपने स्थान को जाओ, तुम्हारे वचन से मैंने तुम्हारे पति को छोड़ दिया है। इस प्रकार शुक के जोड़े को भेजकर 4 शालिपालकों को बुलाकर कहा,पालको इन दोनों पक्षियों को सदा चावल खाने दो। ऐसा वचन सुन दोनों .. पक्षियों ने कहा हे राजन् ! तथास्तु और ऐसा कह कर आशीस दे अपने स्थान पर आगया। जिस वृक्ष पर रहता था उसी पर रहने लगा। MPPPMAJaste इस तरह जिस का दोहद पूर्ण हुआ, ऐसी शुकी ने दो अंडे ( युगल ) दिये । एक दिन वह भोजन के निमित्त बाहर गई, जब पीचे आई तो उसने एक ही अंडा देखा दूसरा नहीं। अपने पुत्र के स्नेह से दुःखित हो - नीचे भूमि पर गिर गई और विलाप करमे लगी। इतने में वह शुक अंडा लेकर वहां आया। वह जमीन में लोटती हुई शुकी ने सामने जब अंडे को देखा तो मानों अमृतसिक्त के जैसे आनन्दित हुई। सावधान होकर " विचारने लगी,जो बंधे हुए पूर्व भव के दारुण कमों का विपाक पश्चाताप से नष्टकर दिया, वह एक भव के पंध हुए कर्मों को विचारती है। For Private And Personal Use Only
SR No.020072
Book TitleAshtaprakari Pooja Kathanak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaychandra Kevali
PublisherGajendrasinh Raghuvanshi
Publication Year1928
Total Pages143
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy